साथियों, इन संघी भाजपाइयों ने कल से एक अत्यंत सेक्युलर दिव्यात्मा, शाही इमाम बुखारी जी के नाम पर हंगामा मचा रखा है। क्यो? क्योंकि इमाम जी ने मोदी जी को बुलावा नहीं भेजा और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को भेजा। अब ये क्या बात हुई भला? उनके घर की पार्टी, वो जिसे चाहें बुलाएं, जिसे ना चाहे ना बुलाएं। वो सेक्युलर हैं, अतएव वो जो करना चाहें कर सकते हैं। पर साथियों, आप बुखारी जी के मस्तिष्क की करामातों से अनभिग्य हैं, इसलिए असली कहानी समझ ही नहीं पाए। अन्दर की कथा कहीं और रोचक है जिसे सुन कर आप भी भिखारी जी...अररर मेरा मतलब है बुखारी जी का गुणगान करने लगेंगे।
ये कथा का आरंभ तब होता है जब इमाम भूखाड़ी...अररर बुखारी...मेरा मतलब है जब इमाम बुखारी साहब के चिरंजीव (दक्षिण भारत के हीरो चिरंजीव नहीं) पुत्र ने अपनी आयु के १९वें वर्ष में प्रवेश किया। सीनियर बुखारी जी ने तो अपना जीवन बड़े ठाठ से राजनीतिज्ञों को नाकों चने चबवाते एवं कंट्रोवर्सी मेकूद सुर्खियाँ बटोरने में बीता...पर जूनियर बुखारी का क्या? वो तो बेचारा अभी इस संसार के कठोर संघी-भाजपाइयों की कम्युनल छाया तक से अनभिग्य था। उल-जलूल बातें कर मुफ्त में पब्लिसिटी पाने की कला से पूर्णतया अपरिचित! अपने बाद अपने प्रिय पुत्र का क्या होगा ये चिंता इमाम बुखारी को भीतर ही भीतर तीतर बनाने लगी। साथियों, चिंता चिता सामान होती है...और चिता तो कम्युनल लोगों की जला करती है, सेक्युलर लोग तो दफनाये जाते हैं! अब यदि इतने बड़े शाही इमाम बुखारी जी चिंतामग्न हो जाते तो वो चिता में जलने सामान होता और ये तो कम्युनल बात हो जाती ना! अतएव इस चिंता का समाधान आवश्यक ही नहीं अपितु अत्यावश्यक हो चुका था। एक और बात ये कि, जैसे हर पिता चाहता है कि उसकी गद्दी पर उसका पुत्र बैठे, वैसे ही इमाम बुखारी साहब भी अपने पुत्र को अपनी जगह एक सच्चा सेक्युलर और शांतिप्रिय इमाम बना देखना चाहते थे। अपने पुत्र को उत्तराधिकारी घोषित करने का मन बनाया तो इस बात की पब्लिसिटी कैसे की जाये यह भी चिंता का विषय बन गया। अब दोनों समस्याओं का निराकरण कैसे किया जाये? इमाम बुखारी जी ने अपनी पाक एवं सेक्युलर दाढी पर बस एक बार हाथ फेरा और बस! झट से उनके मस्तिष्क का बल्ब चकाचौंध जल उठा! पूरा प्लान बना कर वो सोने चले गए।
अगली रात आने से पहले ही हर समाचार चैनल में समाचार था कि किसी कमालुद्दीन नाम के आदमी ने इमाम बुखारी पर मिट्टी का तेल डाल कर उन्हें जलाने का प्रयत्न किया। सुरक्षाकर्मियों ने उस कमालुद्दीन को अपना कमाल दिखने के पहले ही धर दबोचा और इस प्रकार इमाम बुखारी को आग पकड़ने से बच गए, पर यह समाचार आग की तरह चहुँ ओर फैल गयी। हर समाचार चैनल पर अब इमाम बुखारी छा चुके थे। मज़े की बात तो ये हुई कि एक से बढ़ कर एक षडयंत्र-कथा अर्थात 'कांस्पीरेसी थ्योरी' के सारे प्रणेताओं में से किसी ने भी इस घटना पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया। किसी ने नहीं पूछा कि जिस देश में बदले के लिए लड़कियों पर अम्ल/एसिड के बल्ब मार दिए जाते हों वहाँ कोई घासलेट ले कर बुखारी पर हमला करने क्यों पहुँचा? और तो और ये व्यक्ति सजदे में झुके नमाजियों की १० पंक्तियों को पार कर इमाम बुखारी तक कैसे पहुँच गया? और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न तो ये है कि हर छोटी-बड़ी बात पर "इसके पीछे आरएसएस का हाथ है" की सत्यता की पुष्टि करने वालों ने भी चूँ तक ना की! मतलब समझे? प्रथम चरण सफल हुआ!
अब प्रथम चरण के सफल होते ही अति चतुर - अति सेक्युलर शाही इमाम बुखारी साहब ने दुसरे चरण का 'बिस्मिल्लाह' किया। अपने लौंडे को इमाम के पद का उत्तराधिकारी घोषित करने के कार्यक्रम के न्योते भेजने आरंभ किये और इस क्रम में प्रधानमंत्री मोदी को छोड़ दिया। इतने में तो केवल चिंगारी ही निकलती, पर अग्नि ठीक ढंग से प्रज्वलित होने के लिए घी भी तो डालना होता है ना? अब किसको घी बनाया जाय? इमाम साहब गहन सोच में डूबे थे कि अभी कुछ दिनों पहले कैसे उन्हें कोई पूछने तक नहीं आता था इस बात का विचार उनके मन में सिसका। उनका हाल एकदम पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री जैसा हो गया था जिसे वहाँ का कोई खुजैल कुत्ता तक भाव नहीं देता। भिखारियों से निकृष्ट हालत है बेचारे पाकी प्रधानमंत्री का! ... अरे! यही तो है अपना घी! यही है वो प्राणी जिसका नाम आग में घी का काम कर सकता है ... और इस प्रकार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को न्योता भेजा गया। बस! मिल गया समाचार चैनलों को मसाला। पूछे जाने पर मोदी को २००२ का दोषी कहना तो पुराना पैंतरा तो है ही बुद्धिजीवी वर्ग को अपनी ओर करने का। ऊपर से ये 'भक्त'! तनिक कुछ बोलो मोदी जी के नाम से, तांडव करने लग जाते हैं! कहने लगे "बुखारी ने भिखारी को न्योता भेज है।" ... उन्हें जो कहना है वो कहते रहें पर देखो कैसे दसों दिशाओं में ना केवल इमाम बुखारी और उनके लख्तेजिगर का अपितु उनके कुटुंब की कई पीढ़ियों के नाम गूंज रहे हैं। है ना कमाल की बात? मतलब "हींग लगे ना फिटकिरी, रंग भी चोखा होय" वाली बात हो गयी!
ना साथियों ना। ये सोचने की त्रुटी कतई ना करना कि इस अत्यंत गूढ़-रहस्यमई तथा प्रभावी योजना के केवल दो ही चरण हैं। बुखारी साहब ऐसे ही शाही इमाम के पद पर इतने वर्षों से बैठ कर देश के कानून पर अट्टहास नहीं कर रहे। उनका दिमाग 'जुपिटर की एस्केप वेलोसिटी' से भी तीव्र गति से चलता है। अपने सुपुत्र को जब तक बुखारी जी भारत में 'सेक्युलर शिरोमणि' की उपाधि नहीं दिलवा देंगे तब तक इस योजना के विभिन्न चरणों का क्रमबद्ध क्रियान्वयन होता रहेगा। बस देखते जाइये! वैसे अब देखना ये भी है कि इनके सुपुत्र के उत्तराधिकारी बनाये जाने की घोषणा के समारोह में देश-विदेश से कौन कौन आ कर ठुमके लगाएगा... कोई ठुमके लगाये या ना लगाये गाना तो यही बजेगा - "पार्टी तो बनती है!"
Sahukar ji aap mahan ho . .
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