रामदीन का बेटा क्यों हुआ कम्युनल ?

साथियों, आज हम देश में आये एक नए खतरे का खुलासा करने जा रहे हैं - रामदीन का बेटा कम्युनल हो गया है। क्यों हुआ, कैसे हुआ इसकी भी पड़ताल करेंगे। साथियों, कम्युनल होना भ्रष्ट होने से भी बड़ा अपराध है। अतएव हम सब को एकजुट हो कर रामदीन के परिवार का बहिष्कार करना चाहिए। साथ ही मैं मोदी जी से पूछना चाहूंगा कि जब उनके राज में लोग कम्युनल होते जा रहे हैं तो क्या यही हैं अच्छे दिन?

मित्रों और सहेलियों, मैं जानता हूँ कि अबतक आपके मन में एक प्रश्न मक्खी की भांति भिनभिना रहा होगा कि ये रामदीन है कौन? रामदीन एक पुराने नगर के पुराने घराने का व्यक्ति है। हम सेक्युलर हैं, तथा रामदीन के घर के बंटवारे की बात करना व्यर्थ समझते हैं। बाकी इतिहास-भूगोल छोड़ कर विषय-वस्तु पर आएं तो बात दशक-दो दशक भर से चल रही है, जब रामदीन का लड़का निक्कर पहन कर गलियों में नंगे पांव दौड़ता-फिरता था। मोहल्ले की चाचियों को रामदीन के लौंडे पर बड़ा प्रेम था। तभी जब भी कोई त्रुटि होती लौंडे से तो उसे सुधारने के लिए ले बेंत उसकी खाल उधेड़ देती थीं। बड़ा प्रेम करती थीं उस से। मतलब, अगर वह त्रुटि करे और उसे कोई दंड ना दे तो बिगड़ ना जाता रामदीन का लड़का ? बाकी मोहल्ले के लौंडे चाहे जो करें, चाची को कछु फर्क ना पड़ता था, पर रामदीन ने जहाँ कोई उद्दंडता की, वो अपने कर्तव्य निर्वहन के लिए दौड़ पड़ती थीं।

जैसे जैसे रामदीन का लड़का बड़ा होता गया, चाचियों का प्रेम और गहराता गया। अब जब मोहल्ले में किसी और के लौंडे कोई उद्दंडता करते, तब भी चाचियाँ रामदीन के लड़के के बताशे सेंक देतीं। अज्ञानी लोग इस प्रेम को नहीं समझेंगे, केवल ज्ञानी-उदारवादी(लिबरल) और सेक्युलर जन अपने दिव्य ज्ञान से इस प्रगाढ़ प्रेम की गहराई नाप पाएंगे। मनुष्य वो जो अपनी त्रुटियों से सीखे, और बुद्धिमान मनुष्य वो जो दूसरों की त्रुटियों से सीखे ! वास्तव में चाचियाँ रामदीन के लड़के को बुद्धिमान मनुष्य बनाना चाहती थीं, इसलिए जब भी कोई और लौंडा उद्दंडता करता, कान रामदीन के छोकरे के उमेठे(मरोड़े) जाते, और कभी कभी खाल भी उधेड़ दी जाती...ताकि वह दूसरों की त्रुटियों से सीख ले सके।  अहाहा, कैसा अलौकिक प्रेम ! पर रामदीन का लौंडा, मंदमति कहीं का, समझ ही नहीं पाया इस प्रेम को। नथुने फुलाने लगा था।


एक समय की बात है, मोहल्ले के दुसरे लौंडे जिस गली के कुत्ते को बची-कुची हड्डियाँ डाल दिया करते थे, उसे आज लतिया रहे थे। ये वही कुत्ता था जिसे ये जब-तब रामदीन के बेटे पर छोड़ दिया करते थे। इनके इस अगाध प्रेम-पूर्ण उपकार के कारण ही रामदीन का लड़का पाठशाला में दौड़ में प्रथम आया। आज यही कुत्ता जुतियाए जाने पर बेचारे मोहल्ले के लौंडों का पैर चबा बैठा! बेचारे लौंडे! चाचियों की ममता भरी छाती दुःख से फट पड़ी। चाचियाँ किसी की पीड़ा नहीं देख पातीं। सो चाची जी बुक्का फाड़ कर विलाप करने लगीं। दूसरे ही दिन रामदीन के लड़के को किसी ने धक्का मार कर गिरा दिया। उसके हाथ में लग गई और खून निकल आया। चाचियाँ सबकुछ देख रही थीं, पर उन्होंने मुँह दूसरी ओर मोड़ लिया। क्यों? क्योंकि वो रामदीन के बेटे से बहुत प्रेम करती हैं और नहीं चाहती थीं कि रामदीन का लड़का रोतडू बने। वे उसको निर्भीक-निडर बनाना चाहती थीं, वे चाहतीं थी कि वह स्वयं अपनी देखभाल करने में सक्षम बने। इसलिए अपने कलेजे पर पत्थर रख कर उन्होंने उसे और उसकी पीड़ा को अनदेखा कर दिया। हाय! ये कैसा महान त्याग! पर रामदीन का लौंडा, निपट नालायक ! घर आ कर चाचियों को ही भला-बुरा कहने लगा। भेद-भाव का झूठा आरोप लगाने लगा। मतलब, पूत के पाँव अब दृष्टिगोचर हो चले थे !





पिछले महीने की बात है। नगर के भांडों ने रात को चौपाल पर दिखाए जाने वाले तमाशे के लिए रामदीन के घर की कहानी लिखी। इतने भले भांड थे कि ढून्ढ-ढून्ढ कर घर में जमे जमा कचरे का बढ़ा-चढ़ा कर बखान किया। ना केवल इतना, रामदीन सवेरे जो चिड़ियों को चुग्गा डालता था उसपर भी व्यंग किया। रामदीन का लौंडा लगा फड़फड़ाने। मोहल्ले की चाचियाँ फिर आयीं अपना कर्तव्य निभाने - उन्होंने इस मूढ़ मति को समझाया कि ये भांड उनकी भलाई के लिए ये कर रहे थे। उन्होंने उसके घर के कचरे का पता बता कर उसे उस कचरे को साफ़ करने का अवसर प्रदान किया है। रामदीन का छोरा फिर फड़फड़ाया कि बाहर वाले उनके घर में थूक कर जाते हैं, इसपर कोई कुछ क्यों नहीं कहता, उन्हें कोई क्यों नहीं रोकता ? तब अपने चमत्कारी ज्ञान का परिचय देते हुए कहा कि उनका काम केवल अपना घर साफ़ करना है। यदि तुम अपने घर को साफ़ करते रहोगे तो एक दिन बाहर वाले थूकते-थूकते अवश्य थक जायेंगे। कितने महान विचार हैं चाचियों के ! पर लौंडा था कि पैर पट/क कर वहाँ से निकल लिया।



इस घटना को अभी अधिक समय नहीं हुआ था कि किसी बाहर वाले ने मोहल्ले के एक घर के विषय में ऊल-जलूल बक दिया। उस घर के लौंडे दनदनाते हुए गए और उस आदमी की टांग तोड़ आये। अब सारी चाचियाँ मिल कर भला-बुरा कहने वाले को दोष दे रहीं थीं, "भला किसी को ऐसे कुछ भी बोलना शोभा देता है क्या?"… रामदीन का बेटा सब देख रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि किस प्रकार वह प्रतिक्रिया दे।  इतने में चाचियों के झुण्ड में से एक अति ज्ञानी चाची आई और दिया कंटाप रामदीन के गाल पर रख और पूछी, "यदि तेरे बाप के बारे में कोई ऐसे भला-बुरा कहेगा तो तुझे कैसा लगेगा?" 



आज पता नहीं रामदीन के लौंडे ने क्या भांग चढ़ा रखी थी। पहले तो उसने एक हाथ से अपना गाल मला, फिर जबड़े भींच, नथुने फुला कर बोला, "हराम की जनि दो टके की पतुरिया… दद्दा को तो वर्षों से हर आता-जाता कुछ ना कुछ बोल जाता है; उनके भोलेपन पर उन्हें ठग जाता है। हम जब भी आवाज उठाये, तुम भांड-टोली ने ही हमको मर्यादा का थोथा ज्ञान सुनाया। पर अब और नहीं। आज के बाद उंगली दिखाई तो हाथ तोड़ कर पिछवाड़े ठूंस दूंगा, फिर चाहे दद्दा हमारी खाल ही क्यों ना खिंचवा दें। दद्दा की मार मंजूर है हमें, पर कोई उनका अपमान करे ये नहीं सहेंगे हम। हम किसी और के ऊपर कीचड नहीं उछालते, पर अब कोई और यहाँ थूकने आया तो उससे चटवा के आंगन साफ़ करवाएंगे।" - छी छी छी! क्या यही संस्कार दिए हैं रामदीन ने अपने लौंडे को ? ये कोई तरीका हुआ बड़ों से बात करने का ? कोई सभ्यता-शिष्टाचार है कि नहीं ? अवश्य ये लड़का आजकल संघियों के साथ रहने लगा है… तभी इतना बिगड़ गया है। इसके कम्युनल बनने के पीछे आरएसएस का हाथ है। भगवा आतंकवादी… रामज़ादा कहीं का !
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6 comments:

  1. बेहतरीन व्यंग

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    1. हृदयपूर्वक धन्यवाद :)

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  2. True depiction of these #MediaPimps and especially Sagarika chachi. Good humuor and use of symbolism.

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  3. good good... sahi hai mitra..

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  4. बिल्कुल सही चित्रण। सटीक।

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