साथियों, पिछले दो दिन से सारे मीडिया वाले और सारे संघी-भाजपाई रोबर वाड्रा जी के पीछे ना केवल हाथ धो कर, अपितु पूरे नहा-धो कर पड़े हैं। क्यों? क्योंकि उन्होंने किसी पत्रकार के विनम्रतापूर्वक ४ बार केवल यह प्रश्न किया था, "आर यु सीरियस?"...अर्थात, "क्या आप गंभीर हैं?"। बस इतना हुआ था और इन मीडिया वालों ने नमक मिर्च लगा कर तिल का ताड़ और राइ का पहाड़ बना डाला। अब क्या करें ये लोग भी, सनसनीखेज़ समाचारों के बलबूते ही तो इनकी रोज़ी-रोटी चलती है। एक तो कई दिनों से युगपुरुष जी ने रायता नहीं फैलाया, दूसरे भाजपा ने भी अपना ध्यान केवल सरकार चलाने में केन्द्रित कर रखा है। दिग्गी जी भी अपनी 'राय' आजकल अपने तक ही सीमित रखते हैं। ऐसे में तो इन बेचारे समाचार वालों की तो दुकान ही बंद हो जाएगी। इसलिए एक छोटी सी बात को फुला कर बड़ा गुब्बारा बना कर लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं। पर कोई तो ऐसा हो जो 'दामाद जी' का पक्ष रखे! अतएव हमने सच का खुलासा करने की ठानी है। अब पढ़िए कि असल में हुआ क्या था -
बात शुरू होती है उस दिन की सुबह से, जब रोज़ की तरह रोबर जी बिस्तर पर से उठते हुए और धरती पर अपने मजबूत चरण रखने के पूर्व प्रातःस्मरणीय राजमाता जी के नाम की एक माला जपना भूल गए। तभी से महाबली रोबर जी की बायीं आँख फड़कने लगी। जब इस अपशकुन की चर्चा उन्होंने ब्रह्मज्ञानी श्री श्री कपिल सिब्बल बाबा से किया तो उन्होंने गहन विचार के बाद इस अपशकुन का अर्थ यूँ बताया कि आज रोबर जी पर शनि महाराज की दृष्टि वक्र है तथा रोबर जी को शारीरिक तथा मानसिक हानि के योग हैं, अपकीर्ति(बदनामी) या जगहंसाई के प्रबल योग दिख रहे हैं। इतना सुन का रोबर जी सतर्क हो गए। उन्होंने ठान ली कि आज दिन भर वो अत्यंत सावधानीपूर्वक काम करेंगे।
सावधानी के क्रम में रोबर जी ने एक दिन के लिए अपनी कसरत स्थगित कर दी। यूं तो रोबर जी ने इतने मसल बना रखे हैं कि अब उनमे ऐसी शक्ति है कि वो अपने दोनों हाथों से पूरा का पूरा द्रोणगिरी पर्वत उठा सकते हैं, पर चूंकि आज शनि महाराज तनिक कुपित थे तो उन्होंने जिम में वजन ना उठाना ही श्रेयस्कर समझा। अब यदि कोई भारी सा डम्बल या बारबेल उनके हाँथ से उछल कर कहीं नीचे भूमि पर गिर पड़ा तो उनका तो कुछ ना बिगड़ेगा, परन्तु नगर में भूचाल आने की तीव्र सम्भावना होती। अतएव, लोकहित में महान त्यागी रोबर जी ने जिम जाने का विचार त्याग दिया। वैसे रोबर जी जॉगिंग इतनी तीव्र गति से करते हैं की उसैन बोल्ट भी उनके समक्ष पानी भरे, परन्तु यदि आज वो जोगिंग पर निकले और कहीं कोई दीन प्राणी उनसे टकरा बैठे तो? या फिर मार्ग में कोई पत्थर आ गया और वे गिर पड़े तो? पुनः भूचाल की सम्भावना! इसलिए जनकल्याण के लिए जोगिंग का कार्यक्रम भी स्थगित कर दिया गया। अब तीसरा प्रावधान साइकिलिंग का था। सच पूछिए तो दामाद जी जब सायकल चलाते हैं तो बुलेट ट्रेन को भी पीछे छोड़ देते हैं। पर क्या हो यदि सायकल का ब्रेक फेल हो जाये? ऐसे में जहाँ कहीं भी ठोकर लगेगी, रोबर जी का तो नाखून भी ना टूटेगा परन्तु भूचाल आना पक्का है! उफ़ ये भूचाल और उफ़ ये लोककल्याण! सायकल भी उस दिन अपनी जगह खड़ी-खड़ी सुस्ताती ही रही। इस प्रकार कसरत ना कर पाने के कारण वाड्रा जी की भुजाएं/बाइसेप्स कुल .००७६४ इंच सिकुड़ गए! परन्तु रोबर जी ने उफ़ तक ना की...लोककल्याण के लिए उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक यह बलिदान देना स्वीकार किया। इस प्रकार हर अनिष्ट की आशंका को टालने में प्रयत्नरत रोबर जी ने अपना पूरा दिन घर में रहकर बिताया। जब सूर्यास्त हो गया तो अनिष्ट टल जाने की आशा के साथ रोबर जी पार्टी में जाने के लिए निकले।
नहा धो कर चकाचक बन कर रोबर जी अपने घर से निकले ही थे कि रस्ते में उनकी कार का टायर फुस्स हो गया। उन्होंने सोचा कि कदाचित इसी बहाने अला-बला उतर गयी। रोबर जी को पैदल चलने की सूझी। इसी बहाने आज की कसरत भी हो जाएगी। फिर क्या था, अपनी नवाबी चाल में लहराते-इठलाते-बल खाते वाड्रा जी शहर भर, भरे बाजार अपनी अदाओं के जलवे बिखेरते हुए आये। कभी अपने (सर के) केशों पर हाथ फेरा...तो कभी पतलून की जेब में हाथ डाल रजिनीकांत स्टाइल में चले...और कभी अखियों पर गोगल चढ़ा, कोट को उतार उसे एक हाथ से अपने कंधे पर लटका कर चले। वाड्रा जी का इस्टाइल कुछ यूं कातिलाना था कि बूढ़े और जवान दांत निपोर कर बड़ी सी मुस्कान लिए उन्हें एक टक निहार रहे थे। वहीं माँ-बाप अपने बच्चों को उनकी ओर देखने से रोक रहे थे...कदाचित इसलिए कि अभी से ऐसा धाकड़ स्टाइल मारना नहीं सीखना चाहिए बच्चों ने। कुछ इस प्रकार महाबली-महानायक 'भूपति' वाड्रा जी पार्टी में पहुंचे।
वाड्रा जी पार्टी-स्थल पर पहुंचे ही थे कि आ धमके ये मीडिया वाले। पर वाड्रा जी बड़े ही संयमशील हैं...अतएव उन्होंने रिपोर्टर के प्रारंभिक प्रश्नों का बड़ी सहजता एवं धैर्यपूर्वक उत्तर दिया। बस अंतिम प्रश्न, जो कि प्रश्न नहीं अपितु सूचना थी, गले में खट्टी इमली की भांति अटक गया।
पूरा साक्षात्कार समाप्त होते ही उस निर्लज्ज रिपोर्टर ने वाड्रा जी को सूचित किया, "सर, आपके पतलून की ज़िप नीचे है।"
क्षणभर में बाजार में अपनी चाल और उसपर लोगों की प्रतिक्रिया वाड्रा जी के मन कौंध गई। सकपकाए हुए वाड्रा जी को नीचे देख कर इस बात की सत्यता को परखने का भान भी ना हुआ।
उनका रिकॉर्ड केवल "आर यू सीरियस?" पर अटक गया।
जब चार बार वाड्रा जी ने यह पूछ लिए तो रिपोर्टर ने दांत निपोरते हुए उत्तर दिया, "जी हाँ, सर। और तो और आपकी ज़िप से आपके शर्ट का एक कोना बाहर निकल कर संसार को प्रणाम भी कर रहा है!"
"आर यू नट्स!"
अब वाड्रा जी को समझ आ गया था कि क्यों मार्ग में सब दांत निपोर कर मुसका रहे थे। शनि महाराज की वक्र दृष्टि के कारण आज प्रचंड झंड हो चुका था उनका। उधर रिपोर्टर था कि 'मसाला' मिलने की आस में माइक को वाड्रा जी के मुख में घुसाए जा रहा था। हताशा में नार्भसियाये तथा फ्रस्टियाये हुए महाबली वाड्रा जी ने हल्का सा हाथ क्या लगाया माइक को, उनकी असीम शक्ति के समक्ष माइक को झटका लग गया। अब किसी प्रकार अपनी रही-सही इज्जत को बचाने के प्रयास में महाबली वाड्रा जी ने अपने अंगरक्षकों को भिड़ा दिया और स्वतः कोपभवन की तलाश में भीतर की ओर लपक लिए। यहाँ बाहर उनके अंगरक्षकों से मामला सम्हाल नहीं पाया, वहां भीतर वाड्रा जी फफक-फफक कर रोये हैं।
रात से ही मीडिया वालों ने वाड्रा जी के साक्षात्कार के अन्य प्रश्नों को ना दिखाया, पर अंत का हिस्सा बारम्बार दिखाया। जले पर नमक छिड़कने के लिए सारे संघी-भाजपाई भी उनके साथ हो लिए। साथियों, सच कहते हैं हम, ऐसा झंड तो कोई शत्रु का भी ना कटवाए। आप सब भी इस घटना से सीख लें और सदैव घर से बाहर निकलते समय अपनी पतलून का ज़िप टटोल कर सुनिश्चित कर ले कि वह ऊपर खिंचा हुआ है। सावधानी में ही सुरक्षा है!
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