नरेंद्र मोदी का शपथग्रहण समारोह हो रहा था और सारे जन अपने-अपने दूरदर्शन यंत्र पटल अर्थात टीवी स्क्रीन पर अपने चक्षु जमाये बैठे थे। कदाचित यह प्रथम अवसर था जब इतने लोगों ने इतनी उत्सुकता के साथ यह समारोह देखा, नहीं तो महामहिम राष्ट्रपति महोदय को 'मैं-मैं' करते और बाकियों को उनकी वही एक सी शपथ को पर्ची से पढ़ते देखने में किसे उत्सुकता होती! वैसे आपिये इसपर आपत्ति करेंगे। (अब हमारे प्रिय 'आपिये' 'आप'-त्ति नहीं करेंगे तो ये संघी-भाजपाई और कांग्रेसी करेंगे?) कहेंगे कि युगपुरुष केजरीवाल की सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में भी लोगों की ऐसी ही रूचि थी। सही बात है, सबको असीम उत्सुकता थी कि बहुमत से ८ सीट दूर, जिनको कोसे बिना दिन नहीं बीतता था, उनसे समर्थन ले कर जो सरकार बन रही है, उसका शपथग्रहण कैसा होगा। अपनी अति तीक्ष्ण बुद्धि का परिचय देते हुए आपियों ने दोनों समारोहों में एकत्रित हुई भीड़ की भी तुलना कर डाली। अब एक ओर देश-विदेश से बुलाये गए अति विशिष्ठ अतिथि और दूसरी और युगपुरुष जी के लिए प्रगाढ़ प्रेम के चलते उमड़ी भीड़ ! देख लीजिये, मोदी जी के समारोह में जमा हुई भीड़ युगपुरुष के लिए आये लोगों के सामने बौनी है! नहीं? (ध्यान रहे, यदि आप ने इस तर्क का विरोधाभासी उत्तर दिया तो आप अदाणी और अम्बानी के हाथों बिके हुए हैं या संघी-भाजपाइयों से वेतन पा रहे हैं!)
दूसरी घटना जो भूले नहीं भुलाई जा रही है वह है 'खिलाडी' अक्षय कुमार का ज़ी-न्यूज़ चैनल पर ठीक शपथ ग्रहण के बाद प्रकट होना। ना कभी कोई राजनैतिक, ना सामाजिक विषय पर इनको मुखर होते देखा-सुना। फिर अब ये क्या कहने आये थे - इस विचार ने मुझे उत्सुक कर दिया था। कुछ ही क्षणों में समझ आया की 'खिलाडी' महाशय ने अपनी आने वाली फिल्म के विज्ञापन अथवा प्रमोशन करने के लिए दर्शन दिए हैं। मुझे समझ नहीं आया की इसपर हँसा जाये या अपना माथा ठोक लिया जाये। मतलब, बॉलीवुड वाले आजकल अपने फिल्मों के प्रचार के लिए कहीं भी आ धमकते हैं। शाम को टीवी पर कोई कार्यक्रम देखते रहिये, पता नहीं उस कार्यक्रम की कहानी में कहाँ से घुस आएंगे। अरे भाई, कोई तो जगह छोड़ दो!
किसी तरह इस घटना को भुलाने के प्रयत्न ही कर रहा था कि देखा कि किसी मित्र नें फेसबुक पर 'पंजाब केसरी' का लिंक साझा किया था, जिसका शीर्षक मेरी उत्सुकता को पुनर्जीवित कर चुका था -
जब जिज्ञासावश इस लिंक पर क्लिक किया और लेख पढ़ा तो पता चला ये तो बात का बतंगड़ बना कर लेख लिखा गया है! क्या अब ऐसे लेखों का ज़माना आ गया है? लेख का लिंक
मतलब, 'मोदी जी ने अपनी लेखनी का प्रयोग किया' क्या अब इस विषय पर भी लेख लिखे जायेंगे? आज की पत्रकारिता बिक चुकी है, निम्नस्तरीय हो चुकी है यह तो ज्ञात था, परन्तु है इसका साक्षात प्रमाण देख कर सिवाय तरस खाने के और कुछ कर भी नहीं सकता।
वैसे कल तक जो TRP के लिए इसी मोदी को पानी पी-पी कर कोसते थे, आज उसी मोदी की छोटी से छोटी बात की प्रशंसा करते नहीं थक रहे - "मोदी जी के वस्त्र देखिये, उनकी चाल देखिये, उनकी बोली देखिये, वाह वाह!" थूक कर चाटने वाले इन थाली के बैंगन और बिन पेंदी के लोटों से भरा पड़ा है आज का पत्रकारिता जगत। जब लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ इस प्रकार पंगू हो चुका हो तो अपने विवेक तो तीक्ष्ण रखना ही एकमात्र उपाय बच जाता है।
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