शशि थरूर की अनुशासनहीनता का विश्लेषण

साथियों, आज एक नई स्थिति पैदा हो गयी है...राजमाता सोनिया गाँधी के आदेश पर कांग्रेस के 'चॉकलेट हीरो' श्री शशि थरूर जी को दण्ड के रूप में प्रवक्ता पद से उतार दिया गया है। एक समय बड़े ही सेक्युलर, ज्ञानी और स्वामिनी भक्त प्रतीत होने वाले थरूर जी आज सबको बड़े अनुशासनहीन दिख रहे हैं। वैसे कामदेव से वरदान प्राप्त थरूर जी के स्वयं के दूध के धुले होने का प्रमाण तो किसी के पास नहीं है, परन्तु  अब ये कांग्रेसियों के लिए पूरे खलनायक बन चुके हैं। अब कोई कांग्रेसियों से पूछे थरूर जी के विषय में तो अचम्भा नहीं होगा यदि कोई उन पर अनुशासनहीनता के साथ साथ सांप्रदायिक होंने का भी आरोप थोप दे...आखिर सांप्रदायिक/कम्युनल आज संघी-भाजपाइयों को छोड़ कर हर पार्टी के लिए प्रिय गाली जो हो गयी है, ठीक उसी प्रकार जैसे आपियों के लिए 'भ्रष्ट' सबसे बड़ी गाली है। इस समय सारे आपीए शशि थरूर जी को एक स्वर में भ्रष्ट कहेंगे और इसके प्रमाण भी दे देंगे कि थरूर जी अदानी और अम्बानी के एजेंट हैं और उनके हाथों बिके हुए हैं। पर ऐसा क्या किया थरूर जी ने कि वो नायक से खलनायल बन गए?
वैसे कोई कुछ भी कहे, सब जानते हैं कि थरूर जी को मोदी जी की प्रशंसा और उनके स्वच्छ भारत अभियान से जुड़ना भारी पड़ गया। कदाचित कांग्रेस भांप चुकी है कि 'स्वच्छ भारत' तभी होगा जब भारत कांग्रेस मुक्त होगा। अब यदि थरूर जी ऐसे में मोदी जी और उनके हर अभियान में कमी ना निकाल पायें तो वो कांग्रेस के किस काम के? इस पूरी घटना को हम दो उदाहरणों में देख सकते हैं - एक सेक्युलर उदाहरण और दूसरा कम्युनल ।
मित्रों और सहेलियों, सेक्युलर उदाहरण में शशि थरूर जी उस शेख चिल्ली सामान प्रतीत होते हैं जो उसी डाल पर आरी चलता है जिस पर बैठा हो। अब ये बात और है कि ये डाली उस पेड़ की है जिसपर केवल भुजंग (सांप) वास करते हैं। पेड़ चाहे कितना ही कंटीला क्यों ना हो, चाहे उसकी जडें किसी अन्य पौधे को अपने निकट पनपने ना दे और चाहे क्यों ना इस पेड़ पर केवल चील-कौवे-गिद्ध बैठकर मांस के लोथड़ों का भक्षण करते हों, पर यदि आप उसकी डाली पर बैठे हैं तो आप उसे काटने का दुस्साहस कैसे कर सकते हैं! ये काम तो निश्चय ही कोई संघी-भाजपाई गुंडा ही कर सकता है। नहीं?
अब आते हैं कम्युनल उदहारण पर। कम्युनल इस लिए कि यह रामायण से समबन्धित है और कोई भी बात जो रामायण-महाभारत या किसी भी भगवा आतंकवादी विचारधारा से सम्बन्ध रखती हो वो कम्युनल ही हुई ना? तो मुद्दे कि बात ये है कि यहाँ शशि थरूर जी उस विभीषण जैसे प्रतीत होते हैं जिसने अपने भाई महाबली-महाज्ञानी-महापंडित रावण से विश्वासघात कर के श्री राम की प्रशंसा की थी। इसी कारणवश रावण ने अपने अनुज विभीषण को लात मात कर लंका से निष्कासित कर दिया था। तदोपरांत विभीषण की ही सहायता से राम ने रावण का नाश किया और लंका पर विजय प्राप्त की। तब से ही कहावत बन गयी,"घर का भेदी लंका ढाये।"...परन्तु राजमाता सोनिया गाँधी का ह्रदय अत्यंत कोमल है, वे अति दयालु हैं। तभी तो उन्होंने शशि थरूर जैसे घर के भेदी को केवल प्रवक्ता पद से मुक्त किया है, कांग्रेस से निष्कासित नहीं किया! जय हो राजमाता के दयालु-कृपालु-आलू-कचालू ह्रदय की!
सच पूछा जाए तो शशि थरूर जी ने आरंभ से ही कांग्रेस की नीतियों के विरुद्ध कार्य किये हैं, जहाँ कांग्रेस का अनुशासन ये सिखाता है कि चाहे जो भी हो, विरोधी पार्टी और उसके नेताओं को गालियाँ मारिये, वहीँ शशि थरूर मोदी जी के अच्छे कामों की प्रशंसा करते हैं...जहाँ सारे कांग्रेसी राजमाता सोनिया जी की आरती उतारते हैं और प्रातः सर्वप्रथम उनका नाम भजे बिना कुछ और नहीं करते वहीँ थरूर जी कभी-कभार ही अपनी भक्ति का प्रमाण देते हैं। और इसीलिए ये अनिवार्य हो गया था कि उन्हें दिया जाए दंड और डाला जाये इनके मुख में...जीरा-गोली, जिससे इनका स्वास्थ्य शीघ्र ठीक हो। प्रायः लोग बीमारी की हालत में ठीक से विचार नहीं कर पाते और कोई त्रुटी कर बैठते हैं। हो सकता है कि शशि थरूर जी का पेट गड़बड़ाया हुआ हो जिससे वो ठीक ढंग से ना शौच पा रहे हैं और न ठीक ढंग से सोच पा रहे हैं, और इसीलिए ऐसा उत्पात मचाये हुए हैं। 'दंड से सुधारे उद्दंड' - दंड से दुसरे कांग्रेसियों तक ये सन्देश भी जाए कि जो भी राज परिवार का प्रतिदिन गुणगान नहीं करेगा उसे क्या परिणाम झेलने पड़ेंगे। मतलब बास एक तीर से कितने शिकार! देखा राजमाता की अतितीक्ष्ण एवं विलक्षण बुद्धि का चमत्कार?
जय हो सोनिया माता, जय पप्पू बाबा, जय हो समस्त राजपरिवार की।
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