लंदन की तीर चलाती ठंड। बिलावल मियां नाजुक से हाथोँ मेँ लीडरशिप का झंडा थामे खड़े थे। सर्दी से गाल और साँस लेने के लिए मेहनत करते बंद नाक की नोक लाल हो चुकी थी। आकाश पर सूरज भी लाल था। मानो बिलावल की कुछ लाली चुरा ली हो, या फिर आकाशरूपी दर्पण मेँ उसने अपने चेहरे का प्रतिबिँब देखा हो। वह नाजुक सा नन्हा नाज़नीन घुटने जमाए खड़ा था। मीडिया सब देख रही थी। कैमरे सब कैद कर रहे थे। घंटे दो घंटे बीते। भीड़ जमनी शुरू हो गई थी। मिलियन मार्च का ऐलान कर रखा था उसने। सजल आँखोँ से धीरे धीरे जुटती भीड़ का स्वागत कर रहा था। मीडिया सब देख रही थी। कैमरे सब कैद कर रहे थे। घंटे बीत रहे थे, सूरज फलक के बीच काबिज हो चुका था। एक कातिल सी नजर उसने जनसैलाब पर फेरी। कुछेक ने उसकी अदाओँ पर वाह भी कही, वह मन ही मन जरा इतराया। समझने वाले समझ गए थे कि कान पर सिमटी उसकी अंधेरी जुल्फोँ के कुछ आशिक भी घुस आए थे अंदर। मर मिटने वाले आशिक, मार मिटने वाले आशिक। मीडिया सब देख रही थी।
सूरज जरा और चढ़ा। बिलावल की आँखेँ डबडबा आईँ। हाय, पाकिस्तान मेँ बस कर नापाक हो चुकी मुल्तान की नापाक की मिट्टी। ये खुदा क्यूँ इतना नामेहरबान हो गया मुझपर। क्या खता फरमाई थी मैने। कौन सी कमी फकत रह गई। बस दो ढाई हजार आशिक? या खुदा। मेरी खूबसूरती इतनी बेअसर कैसे हो गई। मेरी मासूमियत की तासीर को क्या हुआ? वही मासूमियत जिसके रवाब मेँ मैँने अपने सदाबहार लबोँ से इंच इंच कश्मीर वाली खुमारी अता फरमाई थी। फिर जरा बल खा कर मचल सा गया वह। ऐ परवर दिगार, जितने आशिक दिए, शुक्रगुजार हूँ तेरा। ऐसी कारिंदगी पेश करूँगा इनकी खिदमत मेँ कि लंदन तो क्या, पूरा जहान लरजेगा मेरी आशिकी के लिए। तेरे हुक्म की तामील होगी ऐ खुदा। उधर खुदा मंद मंद मुस्का रहा था। खैर मना बिलावल, बस दो ढाई हजार आशिक भेजे हैँ। लाख आते तो क्या हश्र होता तेरा, फिलहाल तो मैँ ही जानता हूँ। बस ये समझ ले, कि तेरे ये आशिक कुछ ज्यादा ही दीवाने हैँ तेरे। इनकी हसरत बस तेरे जुल्फोँ मेँ उँगलियाँ दौड़ाने की नहीँ, आगे भी बहुत कुछ करने की है। चल तेरी ही बात रहेगी। रहम है मेरा तुझपर, कि आज तू ऐसी कारिंदगी, ऐसी आशिकी का स्वाद चखाए इन्हेँ, कि जहान तो क्या पूरा कायनात तेरे साथ ऐसा इश्क लड़ाने के लिए तरसे। बिलावल खुदा के इस रहमोकरम से अनजान था, और उधर मीडियावाले सब देख रहे थे। कैमरे सब कैद कर रहे थे। खैर, बिलावल ने जज्बात की चमड़ी नोच कर फेंक दी और रूमानियत की नकाब ओढ़ कर हुस्न-परी सा बन गया। पीछे आशिक उतावले और बेकाबू हो रहे थे, और उनकी छेड़ती हुई आवाजों पर बिलावल मियां इतराकर सुबहान अल्लाह और अलहमदुलिल्लाह जैसे लफ्ज उचार देते। ऊपर खुदा के हर अंग में हंस हंसकर बल पड़ रहा था और मीडियावाले सब देख रहे थे।
चलते हुए एक मुकाम आया और मियां बिलावल मंच पर चढ़ आए। जरा चवन्नी सी मुस्कान छेड़ी और जुल्फों को झटककर चेहरे पर थोड़ा अंधेरा कर लिया कि आशिक थोड़े और उतावले हों। बोलने के लिए लब को जरा हिलाया था कि उनके लाल लबों के नाम उड़ता हुआ एक फ्लाइंग-फ्लाइंग लाल सा टमाटर आया।(नो किसिंग) ये दर्दे आशिकी मियां झेल न पाए। आंखों की कोरों से आंसू तो आए पर उन्हें खुशी का जामा पहना दिया। और अदा दिखाते उससे पहले आशिकों का प्यार परवान चढ़ गया। अंडे आए। या खुदा, और क्या क्या भेजोगे। फिर बोतलों की बरसात। ये ऐतिहासिक प्रेम गाथा लिखी जा रही थी। लैला बिलावल मजनूं सा मजमे के तख्त पर लटका हुआ। और सारे मजनूं लैला के बाप की सेना के समान बोतलरूपी पत्थर बरसा रहे थे। ऊपर खुदा थक चुका था हंसहंस कर। बिलावल की ख्वाहिश पूरी हो चुकी थी। खैर, मजनूं भी बचा था। ये लैला भी बच गई। सिपाहियोंने बचा लिया। वाह रे प्रेमकथा। लैला मार खाए, मजनूं फेंके पत्थर और सिपाही जान बचाएं वाह। लैला मजनूं की जगह इसे अलिफ लैला वाली लैला का हिस्सा बना दो। खैर, मीडिया सब देख रही थी। न्यूज चैनलों ने तो उसी दिन कहर बरपा दिया।अगले दिन अखबारें भी छपीं। हर खबर छपी। पहट डाला हर कोना कोना। पर एक खबर थी जो छप ना सकी।
दूर पाकिस्तां में कुछ लोगों ने हिना रब्बानी को गाते सुना था। "कोई बोतल से ना मारे मेरे दीवाने को।"
वह ख़बर जो छप ना सकी...
सूरज जरा और चढ़ा। बिलावल की आँखेँ डबडबा आईँ। हाय, पाकिस्तान मेँ बस कर नापाक हो चुकी मुल्तान की नापाक की मिट्टी। ये खुदा क्यूँ इतना नामेहरबान हो गया मुझपर। क्या खता फरमाई थी मैने। कौन सी कमी फकत रह गई। बस दो ढाई हजार आशिक? या खुदा। मेरी खूबसूरती इतनी बेअसर कैसे हो गई। मेरी मासूमियत की तासीर को क्या हुआ? वही मासूमियत जिसके रवाब मेँ मैँने अपने सदाबहार लबोँ से इंच इंच कश्मीर वाली खुमारी अता फरमाई थी। फिर जरा बल खा कर मचल सा गया वह। ऐ परवर दिगार, जितने आशिक दिए, शुक्रगुजार हूँ तेरा। ऐसी कारिंदगी पेश करूँगा इनकी खिदमत मेँ कि लंदन तो क्या, पूरा जहान लरजेगा मेरी आशिकी के लिए। तेरे हुक्म की तामील होगी ऐ खुदा। उधर खुदा मंद मंद मुस्का रहा था। खैर मना बिलावल, बस दो ढाई हजार आशिक भेजे हैँ। लाख आते तो क्या हश्र होता तेरा, फिलहाल तो मैँ ही जानता हूँ। बस ये समझ ले, कि तेरे ये आशिक कुछ ज्यादा ही दीवाने हैँ तेरे। इनकी हसरत बस तेरे जुल्फोँ मेँ उँगलियाँ दौड़ाने की नहीँ, आगे भी बहुत कुछ करने की है। चल तेरी ही बात रहेगी। रहम है मेरा तुझपर, कि आज तू ऐसी कारिंदगी, ऐसी आशिकी का स्वाद चखाए इन्हेँ, कि जहान तो क्या पूरा कायनात तेरे साथ ऐसा इश्क लड़ाने के लिए तरसे। बिलावल खुदा के इस रहमोकरम से अनजान था, और उधर मीडियावाले सब देख रहे थे। कैमरे सब कैद कर रहे थे। खैर, बिलावल ने जज्बात की चमड़ी नोच कर फेंक दी और रूमानियत की नकाब ओढ़ कर हुस्न-परी सा बन गया। पीछे आशिक उतावले और बेकाबू हो रहे थे, और उनकी छेड़ती हुई आवाजों पर बिलावल मियां इतराकर सुबहान अल्लाह और अलहमदुलिल्लाह जैसे लफ्ज उचार देते। ऊपर खुदा के हर अंग में हंस हंसकर बल पड़ रहा था और मीडियावाले सब देख रहे थे।
चलते हुए एक मुकाम आया और मियां बिलावल मंच पर चढ़ आए। जरा चवन्नी सी मुस्कान छेड़ी और जुल्फों को झटककर चेहरे पर थोड़ा अंधेरा कर लिया कि आशिक थोड़े और उतावले हों। बोलने के लिए लब को जरा हिलाया था कि उनके लाल लबों के नाम उड़ता हुआ एक फ्लाइंग-फ्लाइंग लाल सा टमाटर आया।(नो किसिंग) ये दर्दे आशिकी मियां झेल न पाए। आंखों की कोरों से आंसू तो आए पर उन्हें खुशी का जामा पहना दिया। और अदा दिखाते उससे पहले आशिकों का प्यार परवान चढ़ गया। अंडे आए। या खुदा, और क्या क्या भेजोगे। फिर बोतलों की बरसात। ये ऐतिहासिक प्रेम गाथा लिखी जा रही थी। लैला बिलावल मजनूं सा मजमे के तख्त पर लटका हुआ। और सारे मजनूं लैला के बाप की सेना के समान बोतलरूपी पत्थर बरसा रहे थे। ऊपर खुदा थक चुका था हंसहंस कर। बिलावल की ख्वाहिश पूरी हो चुकी थी। खैर, मजनूं भी बचा था। ये लैला भी बच गई। सिपाहियोंने बचा लिया। वाह रे प्रेमकथा। लैला मार खाए, मजनूं फेंके पत्थर और सिपाही जान बचाएं वाह। लैला मजनूं की जगह इसे अलिफ लैला वाली लैला का हिस्सा बना दो। खैर, मीडिया सब देख रही थी। न्यूज चैनलों ने तो उसी दिन कहर बरपा दिया।अगले दिन अखबारें भी छपीं। हर खबर छपी। पहट डाला हर कोना कोना। पर एक खबर थी जो छप ना सकी।
दूर पाकिस्तां में कुछ लोगों ने हिना रब्बानी को गाते सुना था। "कोई बोतल से ना मारे मेरे दीवाने को।"
वह ख़बर जो छप ना सकी...
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