इतिहास के पन्नों से - महाभारत और आ.आ.पा. (AAP)

धर्म और अधर्म के महायुद्ध की कथा महाभारत को कौन नहीं जानता। आज इस पुण्यभूमि भारत में महाभारत  सा कुछ चल रहा है है, परन्तु सारे पात्र ठीक विपरीत दशा में दिखते हैं! इन सब के बीच, उसी महागाथा महाभारत कि एक घटना याद आ रही है -
बात तब कि है जब पितामह भीष्म कौरव सेना के सेनापति थे।  पांडवों कि सेना में उनका सामना करने का सामर्थ्य केवल अर्जुन में ही था , परन्तु भीष्म को हराने का सामर्थ्य किसी में भी नहीं।  अगर युद्ध ऐसे ही चलता रहता तो पांडवों कि पराजय निश्चित थी।  कृष्ण ने अर्जुन को युक्ति सुझाई।  दोनों पितामह भीष्म के पास गए और उन्हें हराने की युक्ति पूछी। भीष्म ने भी उत्तर दे दिया कि वह कभी किसी स्त्री या नपुंसक के विरुद्ध  शस्त्र नहीं उठाएंगे।

दूसरी ओर, पूर्वजन्म में अम्बा ने भीष्म से प्रतिशोध लेने के लिए शिखंडी, जो कि नपुंसक थे, के रूप में पुनः जन्म लिया था।  अर्जुन ने युद्ध में शिखंडी को अपने रथ में खड़ा किया और उसके पीछे से एक के बाद एक बाण पितामह भीष्म पर चला दिए।  अपने वचन के अनुसार भीष्म ने शिखंडी पर एक तीर न छोड़ा।  अर्जुन के बाणो से छलनी छाती ले कर वो युद्धभूमि पर ही गिर पड़े।

भारत का इतिहास चित्कार कर भारतवासियों से कह रहा है कि उस से कुछ सीख लें।  अर्जुन, कृष्ण और पितामह भीष्म आप सभी को पहचान आयें न आयें , राजनीति के इस शिखंडी को अवश्य पहचानिये; अन्यथा आने वाली पीढ़ियां आपको कदापि क्षमा नहीं कर पाएंगी !
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