दिल्ली के चिड़ियाघर के सफ़ेद बाघ ने बताई मुझे समाज की सच्चाई

"इस घटना पर जानना चाहते हैं हम देश की राय" - मृतदेह दिखी नहीं और गिद्ध लगे आकाश में मंडराने!

रात से समाचार सुन रहा था कि दिल्ली के चिड़ियाघर में एक सफ़ेद बाघ ने किसी आदमी को मार डाला। पहले तो दुःख हुआ, परन्तु जैसे जैसे इस घटना की परतें खुलनी शुरू हुई, मन में भावनाओं का कचूमर और विचारों का तेल निकल गया।

मामला कुछ यूँ है कि मक़सूद नाम का युवक जिसे कोई समाचार चैनल २० साल का तो कोई २५-२६ साल का बता रहे थे, वो सफ़ेद बाघ के बाड़े में पहुँच गया। कुछ कह रहे थे फिसल गया, कुछ कह रहे थे कि स्वयं छलांग लगाई थी उसने। क्या सच? क्या कोई स्वयं बाघ के बाड़े में कूदने की बेवकूफी भी कर सकता है? हाँ या ना के बीच झूलते हुए वो समाचार में दिखाया गया वीडियो याद आया जिसमे कोई नवयुवक 'किक' फिल्म के सलमान खान की भांति बड़े आराम से आती हुई ट्रेन के सामने से पटरी पार कर जाता है। एक सेकंड की भी देर होती तो लौंडा बादलों में उड़ रहा होता। मतलब लोग स्वयं को 'ड्यूड' साबित करने के चक्कर में ट्रेन के सामने से नवाबी चाल से निकल सकते हैं तो बाघ के बाड़े में भी कूद सकते हैं। पर यदि ऐसा नहीं है तो ?

चलिए माना कि मकसूद फिसल कर गिर पड़ा, पर कैसे? समाचार में ही दिखाया गया कि पहले लोहे की बाड़ थी, जिसके आगे जाना मना था। लौंडे को चौकीदार ने मना भी किया, पर फिर भी वो लोहे की बाड़ पार करके अंतिम सीमेंट की बाड़ तक पहुँच गया। इसी समय मुझे वो समाचार याद आया जब दिल्ली में 'धूम' स्टाइल में लौंडे बाइक चलाते लोगों को परेशान कर रहे थे तो दिल्ली पुलिस ने सब की एक रात धर-पकड़ की थी। सालों को अच्छे से पेला था पुलिस वालों ने। पर अगली सुबह उन पुलिस वालों को प्रशंसा के स्थान पर प्रेस वालों की धिक्कार सहनी पड़ी।

हाँ तो अब वहाँ से कैसे गिरा? 4 फुट की दीवार तो थी ही! मतलब लौंडा दीवार पर झूल कर बाघ को देख रहा था? क्या सोचा था कि नीचे गिरने पर बाघ पप्पियाँ देता? पास बैठा कर चाय-पानी के लिए पूछता? पर बाघ फिर भी १५ मिनट तक उसे देखता-सूंघता ही रहा। और अंततः उसपर छलांग लगा कर मुंडी मरोड़ दी। "हाय! कैसा निर्दयी जानवर है!" - मेरे मन में उठा भाव शीघ्र ही बदलने वाला था। टीवी पर लोग चिड़ियाघर प्रशासन पर ठीकरा फोड़ रहे थे कि उन्होंने बेचारे की जान नहीं बचाई।१५ मिनट में जान बचाई जा सकती थी, प्रशासन का कोई व्यक्ति आधे घंटे तक घटनास्थल तक नहीं पहुंचा। बाद में यही समय २० मिनट बताया जाने लगा।

दिन भर काम से थक कर खचाखच भरी बस में खड़े रहने के बाद जब बैठने के लिए जगह मिली तो मेरे बगल में बैठा व्यक्ति उसके मोबाइल में वही विडियो देख रहा था, अनसेंसर्ड! मतलब जब बाघ उस लड़के को चबाने जा रहा था तो कोई वहां ये सब मोबाइल पर रिकॉर्ड कर रहा था। वाह रे मानव! किसी की जान जा रही थी और तू विडिओ रिकॉर्ड कर रहा था! फिर याद आया कि कैसे कुछ दिनों पूर्व जब मुंबई की एक बहुमंजिला बिल्डिंग में आग लगी थी और मैं रिक्शे में उसके समीप से निकला तो लोगों को रास्ते में खड़े हो कर विडिओ बनाते देख स्तब्ध रह गया था। 'रियलिटी शो' हो चुकी हो मानो हर चीज़!

बात तो लोग यूँ कर रहे थे कि बाघ ने लड़के को अपने बाड़े में देखा और उसपर कूद पड़ा। किसी ने कहा की जंगली जानवर की तो प्रवृत्ति ही होती है शिकार करने की। पर विडिओ में देख कर मैं अचरज में पड़ गया कि बाघ बड़ी देर तक केवल उसे देखता-सूंघता ही रहा। मुझे सहसा स्मरण हुआ की जब मैं गिर अभयारण्य गया था तो सिंह मेरी जीप से केवल ४फुट की दूरी से निकला था। साथ में कई और लोग भी थे, परन्तु सिंह तो आराम से निकल गया था! क्या सचमुच जानवर की प्रवृत्ति शिकार करने की है?

अब उसी वीडियो में दिखा की वहीँ बाड़े के बाहर कई लोग चिल्लम-चिल्ली मचा रहे थे, जिससे बाघ का ध्यान थोड़ी देर बंट गया। चौकीदार बाघ को 'विजय' नाम से पुकार कर हटाने का प्रयत्न कर रहा था। और इतने में ही किसी महाज्ञानी ने बाघ को पत्थर मारा जिससे बाघ बिदक गया और उसने लड़के की मुंडी चबा ली। ... "अबे छछूंदर, बाघ था वो, तेरे ससुराल वाली गली का कुत्ता नहीं था!" जानवर की प्रवृत्ति शिकार करने की हो या ना हो, मनुष्य की प्रवृत्ति का तो पता चल ही गया।

बस से उतरा तो देखा कि एक बड़ी कार को एक हाथ से चलाते हुए उसका ड्राईवर दुसरे हाथ से फोन पर बतिया रहा था। कुछ आगे आया तो एक बेचारा स्कूटर सवार स्कूटर को तीव्र ब्रेक लगा कर गिरते गिरते बचा, क्योंकि सामने एक बाला अपने मोबाइल पर टेक्स्ट करते हुए चली जा रही थी। अगर ब्रेक नहीं लगते तो चोट लड़की को आती और लोग बेचारे स्कूटर वाले को पीट देते। कुछ और आगे जाने पर देखा कि एक फटफटी सवार मोबाइल अपने कंधे और कान के बीच दबा कर बाइक दौड़ा रहा था। "कदाचित इन सभी को सफ़ेद बाघ के सामने कूदने की शीघ्रता मची हुई है।"

मैं घर पहुँच कर पुनः समाचार चैनल देखने लगा। वही भीड़ जो खड़े हो कर केवल शोर मचा रही थी, जो पत्थर मार रही थी और विडिओ बना रही थी...वही भीड़ अब चिड़ियाघर प्रशासन पर उँगलियाँ तान रही थी। ऐसा क्यों नहीं हुआ, वैसा क्यों नहीं हुआ, फलाना-ढिमका... "हम तो आम आदमी हैं जी, हम क्या कर सकते थे जी, प्रशासन ने क्यों कुछ नहीं किया जी, प्रशासन बाघ से मिला हुआ है जी।" ... हाँ हाँ क्यों नहीं? प्रशासन को चाहिए कि वो अब तुम्हें ऊँगली पकड़ कर रास्ता भी पार करवाए, नहीं?

मन की संवेदनाएं जैसे मर सी गयी थीं। चहुँ ओर समाचार ये थे कि "खूंखार सफ़ेद बाघ ने एक आदमी को बेरहमी से मार डाला"... अब बाघ पर ५ दिन कड़ी नज़र रखी जाएगी। अब वो सफ़ेद बाघ मासूम सा लग रहा था। मक़सूद की हिमाकत का खामियाजा अब उस सफ़ेद बाघ 'विजय' को भुगतना है। यही हमारे समाज का कटु सत्य है!

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3 comments:

  1. दिल्ली के LG तेजेन्द्र खन्ना ने कुछ साल पहले एक बयां दिया था
    "North Indians take pride in violating law "
    बड़ा शोर मचा था मीडिया में . . .
    हमारी समस्या ये है की हम अपनी गलती देखना ही नहीं चाहते हैं। और अगर कोई हमको समझाए तो हम उसी को भला-बुरा कहने लगते हैं . . .

    बदलाव के लिए सर्व प्रथम अपनी गलती का एहसास होना ज़रूरी है . . .
    हम एक मिथ्या घमंड में जी रहे हैं की हमसे अच्छा कोई नहीं . .

    ऐसे में समाज क्या "घंटा" बदलेगा . .

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  2. शुक्र है की मीडिया ने और कुछ SICKULAR INTELLECTULAS ने ये नहीं कह दिया की

    " हिन्दू नाम वाले बाघ ने अल्पसंख्यक युवक की हत्या कर दी , कहाँ हैं अच्छे दिन ? "

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  3. एकदम सटीक लेख लिखा है -- ना जाने कब इस इंसान रुपी जानवर को अक़्ल आएगी --- और दोषारोपण करने की प्रवृत्ति जायेगी -- 10/10 नंबर आशु
    God Bless You !!

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