#bypolls के नतीजे आये तो जहाँ बीजेपी समर्थक निराश और हतोत्साहित दिख रहे हैं वहीँ लोकसभा चुनावों में धूल चाट चुके लौंडे हवा में उड़ रहे हैं। वही पता नहीं मीडिया वाले क्यों ऐसे प्रसन्न हो रहे है जैसे इनकी भाभी के पहला बच्चा हुआ है। कई छाछून्दरों को ये बोलते सुन रहा हूँ कि लोगों ने अबकी बीजेपी को नकारा है इसलिए सपा को उप्र में जीत मिली।
अबे घनचक्करों, पहली बात तो जे है कि इन चुनावों से कोई मुख्य मंत्री ना तय होना। इसलिए चिल मारो। दूजे जे कि यदि जनता ने बीजेपी को नकारा है, तो क्या कहना चाहते हो कि जनता इतनी चपड़गंजू है कि उसने बीजेपी को नकारने के चक्कर में अपनी माँ बहनों की इज्जत लूटने वालों को चुन लिया?
माध्यम वर्गीय वो जमात है जो बार बार छड़ी नहीं चलाती, वो सब चुपचाप देखती है और फिर सही समय पर अपनी भीमसेनी लट्ठ घुमाती है। इस बार की पछाड़ देख कर यही वर्ग अपनी लट्ठ को तेल में डुबो कर बैठ गई है।
तनिक गहरे पैठो छिछले तालाब के मेंढकों...तनिक अपने कच्चे रेत के घरोंदों से बाहर झाँक कर देखो तो पता चलेगा कि बाहर मरघट सी शांति छाई है...वही शान्ति जो प्रायः आंधी के पहले छाती है। बंगाल में बवंडर उठ चुका है, समय रहते समझ सको तो समझ लो। पर नहीं, अभी तो जीत के आनंद में खोये हो... अच्छा ही है, खोये ही रहो। बुझने के पहले हर दीपक की ज्योत प्रखर होती ही है।
अंत में जान लो, संघियों-भाजपाइयों को कच्ची कैरियां पसंद ना हैं। ये पके हुए केसरिया आम के स्वादू हैं। अभी डाली पर आम कच्चे ही हैं...सो तनिक धीर धरो, अभी फसल उतारने का समय नहीं आया है। ;)
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