अरे भाजपाइयों, जरा तो बाज आइयो! ! एक ओर तो मोदी जी की लहर है कहते हैं , वहीँ दूजी ओर खुद के पैरों पर कुल्हाड़ियों की बौछार किये जाते हैं। जी ऊब गया है राजनीती से या मस्तिष्क सठियाये जा रहा है भाजपा के नेताओं का?
एक बार मुरली मनोहर जोशी जी अड़ गए वाराणसी की सीट के लिए। तदोपरांत गिरिराज सिंह कैमरे पर गरिया गए कि अगर वो बोलेंगे तो कईयों को बेनकाब कर देंगे। यहाँ ये सारे नाटक तो वहाँ सुषमा जी मुंह फुलाये बैठी थीं कि उनकी मनाही के बावजूद भी बी. श्रीरामलू को काहे पार्टी में आने दिया गया। इतने पर संतुष्ट नहीं हुईं सुषमा जी, 'ट्विटिया' कर ही दम लिया। यहाँ कथा समाप्त होती तो फिर भी कोई बात थी। महाराष्ट्र में राज ठाकरे ने अलग उंगली कर दी थी जिसपर शिव सेना वालों ने भी मुंह फुला लिया था। उधर ठहाकेबाज 'गुरु' सिद्धू पा जी भी अमृतसर के लिए खम्बा गाड़े बैठे थे। पा जी माने तो किरण खेर जी को चंडीगढ़ और जनरल वी के सिंह को ग़ाज़िआबाद से टिकट मिलने पर खुद भाजपा के ही कार्यकर्ताओं ने काले झंडे दिखा दिए! ये सारे क्रिया-कलाप शांत होते-होते पितामह आडवानी जी ने फिर से मुंह फुला लिया। ५ बार जहाँ से चुनाव जीतते आये हैं, वो सीट छोड़ कर दद्दू को भोपाल सुहा रहा था। आडवानी जी पर भाजपाइयों से तो अधिक प्रेम कांग्रेसियों बरसा दिया सारे समाचार चैनलों पर! आडवानी जी माने तो कैलाश जोशी का नया स्टिंग गले आ पड़ा है! राजनाथ जी के कपाल पर बाल होते तो अवश्य उन्होंने मारे खीज के खुद ही उन्हें नोच डाले होते।
एक मुसीबत सुलझती नहीं कि दूसरा तमाशा खड़ा हो जाता है। कुल मिला कर कांग्रेसी तमाशा देख कर पेट पकड़-पकड़ कर हंस रहे होंगे। मतलब, किसी और को मौका काहे दें? खुद ही अपने आप को जुतिया लेते हैं , नहीं? अपने स्वयं के 'बताशे' स्वतः सेंकने में आनंद की अनुभूती विलक्षण होती होगी, है ना?
चुनाव नहीं हुए, लड़की का ब्याह हो गया।लड़केवालों की फरमाइशें तो बाद में, लड़कीवाले अपने ही रिश्तेदारों के नखरे सहते-सहते परेशान हैं। बारात द्वारे पे आई है और एक एक करके सारे भाजपाई दीर्घशंका के लिए प्रस्थान कर रहे हैं। हद्द कर दी! कांग्रेसियों की खोपड़िया वैसे ही बड़ी उपजाऊ है। पहले ही उन्होंने 'झाडूवालों' को भाजपा के पीछे लगा रखा है…उसपर बाकी के 'सेक्युलर' दल 'कब गाय मरे तो दावत उड़ाएं' वाले तीसरे मोर्चे के गिद्ध-स्वप्न में खोये हुए हैं। भले ही ये सब अभी अलग-अलग दिखाई पड़ रहे हों, परन्तु मौका पड़ने पर गुड-चीटा होने में देर ना लगेगी इन सबको। दिल्ली में इसका उदाहरण युगपुरुष केजरीवाल जी दिखा ही चुके हैं। तो अगर २०१४ के चुनाव जीतना है तो भाजपाइयों, अपनी-अपनी लंगोट कस लो... क्योंकि इस बार अवसर चूके तो घंटा कोई और मौका मिलगा तुमको!
किसी घर के भेदी से लंका मत ढहवाइयो,
अरे भाजपाइयों, जरा तो बाज आइयो!
आआपा कि तरह
अपने समर्थकों की नाक मत कटवाइयो,
अरे भाजपाइयों, जरा तो बाज आइयो!
खयाली पुलाव पकाते हुए,
मन में लड्डुओं को फोड़ते,
हाथ आती थाली को मत ठुकराइयो।
अरे भाजपाइयों, जरा तो बाज आइयो!
जरा तो बाज आइयो! जरा तो बाज आइयो!
अपनी नहीं तो देश की खातिर,
इस बार खुद अपनी नैय्या मत डुबाइयो।
अरे भाजपाइयों, जरा तो बाज आइयो!
एक बार मुरली मनोहर जोशी जी अड़ गए वाराणसी की सीट के लिए। तदोपरांत गिरिराज सिंह कैमरे पर गरिया गए कि अगर वो बोलेंगे तो कईयों को बेनकाब कर देंगे। यहाँ ये सारे नाटक तो वहाँ सुषमा जी मुंह फुलाये बैठी थीं कि उनकी मनाही के बावजूद भी बी. श्रीरामलू को काहे पार्टी में आने दिया गया। इतने पर संतुष्ट नहीं हुईं सुषमा जी, 'ट्विटिया' कर ही दम लिया। यहाँ कथा समाप्त होती तो फिर भी कोई बात थी। महाराष्ट्र में राज ठाकरे ने अलग उंगली कर दी थी जिसपर शिव सेना वालों ने भी मुंह फुला लिया था। उधर ठहाकेबाज 'गुरु' सिद्धू पा जी भी अमृतसर के लिए खम्बा गाड़े बैठे थे। पा जी माने तो किरण खेर जी को चंडीगढ़ और जनरल वी के सिंह को ग़ाज़िआबाद से टिकट मिलने पर खुद भाजपा के ही कार्यकर्ताओं ने काले झंडे दिखा दिए! ये सारे क्रिया-कलाप शांत होते-होते पितामह आडवानी जी ने फिर से मुंह फुला लिया। ५ बार जहाँ से चुनाव जीतते आये हैं, वो सीट छोड़ कर दद्दू को भोपाल सुहा रहा था। आडवानी जी पर भाजपाइयों से तो अधिक प्रेम कांग्रेसियों बरसा दिया सारे समाचार चैनलों पर! आडवानी जी माने तो कैलाश जोशी का नया स्टिंग गले आ पड़ा है! राजनाथ जी के कपाल पर बाल होते तो अवश्य उन्होंने मारे खीज के खुद ही उन्हें नोच डाले होते।
एक मुसीबत सुलझती नहीं कि दूसरा तमाशा खड़ा हो जाता है। कुल मिला कर कांग्रेसी तमाशा देख कर पेट पकड़-पकड़ कर हंस रहे होंगे। मतलब, किसी और को मौका काहे दें? खुद ही अपने आप को जुतिया लेते हैं , नहीं? अपने स्वयं के 'बताशे' स्वतः सेंकने में आनंद की अनुभूती विलक्षण होती होगी, है ना?
चुनाव नहीं हुए, लड़की का ब्याह हो गया।लड़केवालों की फरमाइशें तो बाद में, लड़कीवाले अपने ही रिश्तेदारों के नखरे सहते-सहते परेशान हैं। बारात द्वारे पे आई है और एक एक करके सारे भाजपाई दीर्घशंका के लिए प्रस्थान कर रहे हैं। हद्द कर दी! कांग्रेसियों की खोपड़िया वैसे ही बड़ी उपजाऊ है। पहले ही उन्होंने 'झाडूवालों' को भाजपा के पीछे लगा रखा है…उसपर बाकी के 'सेक्युलर' दल 'कब गाय मरे तो दावत उड़ाएं' वाले तीसरे मोर्चे के गिद्ध-स्वप्न में खोये हुए हैं। भले ही ये सब अभी अलग-अलग दिखाई पड़ रहे हों, परन्तु मौका पड़ने पर गुड-चीटा होने में देर ना लगेगी इन सबको। दिल्ली में इसका उदाहरण युगपुरुष केजरीवाल जी दिखा ही चुके हैं। तो अगर २०१४ के चुनाव जीतना है तो भाजपाइयों, अपनी-अपनी लंगोट कस लो... क्योंकि इस बार अवसर चूके तो घंटा कोई और मौका मिलगा तुमको!
किसी घर के भेदी से लंका मत ढहवाइयो,
अरे भाजपाइयों, जरा तो बाज आइयो!
आआपा कि तरह
अपने समर्थकों की नाक मत कटवाइयो,
अरे भाजपाइयों, जरा तो बाज आइयो!
खयाली पुलाव पकाते हुए,
मन में लड्डुओं को फोड़ते,
हाथ आती थाली को मत ठुकराइयो।
अरे भाजपाइयों, जरा तो बाज आइयो!
जरा तो बाज आइयो! जरा तो बाज आइयो!
अपनी नहीं तो देश की खातिर,
इस बार खुद अपनी नैय्या मत डुबाइयो।
अरे भाजपाइयों, जरा तो बाज आइयो!
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