हाँ तो साथियों और सहेलियों, उपराष्ट्रपति महोदय श्री हामिद अंसारी पर गणतंत्र दिवस पर छिड़े विवाद पर जो श्रृंखला लिख रहे हैं, उसका दूसरा भाग प्रस्तुत है।
विवाद हुआ और उसके पश्चात उपराष्ट्रपति जी "साँच को नहीं आँच" वाली बात चरितार्थ करते हुए निर्दोष सिद्ध हुए। जिन्होंने आरोप लगाये थे, उमें से कइयों से सार्वजनिक रूप से क्षमा भी मांग ली। बाकियों ने सोशल मीडिया पर किये हुए अपने पोस्ट हटा लिए। परन्तु कई बुद्धिजीवी यहीं शांत नहीं हुए। कुछ ने हामिद अंसारी जी का पहले बचाव और अब महिमामंडन करते हुए विवाद को उनके धर्म से जोड़ दिया। इन तथाकथित बुद्धिजीवियों का कहना था, चूँकि हामिद अंसारी एक 'धर्म विशेष' से हैं, उन्हें बलि का बकरा बनाया गया।सच पूछिये तो मन में घृणा उत्पन्न हो गयी मेरे। क्या हर बात को कम्युनल-सेक्युलर वाले चश्मे से देखना उचित है? क्या कल को कोई चोरी करता पकड़ा जाये तब भी उसके धर्म की बात की जाएगी? आज इस विवाद के कारणों को ढूंढने का प्रयास करेंगे। दोषी कौन है इसपर भी चर्चा होगी; व्यंग नहीं, सीधी बात!
गणतंत्र दिवस पर ध्वज को सलूट करने का प्रोटोकॉल क्या था यह तो अब तक सब को पता चल चुका है। सरल शब्दों में कहें तो अंसारी जी का प्रोटोकॉल के तहत सलूट करना आवश्यक नहीं था, आवश्यक सावधान मुद्रा में खड़े रहना था। सलूट करना केवल राष्ट्रपति के लिए आवश्यक था। वैसे बाकी किसी के लिए सलूट करना वर्जित भी नहीं था। माने, यदि आपका मन करे तो आप सलूट कर भी सकते हैं। इन तथ्यों के आधार पर सबने स्वीकार किया कि उपराष्ट्रपति महोदय पूर्णतया निर्दोष हैं। फिर भी विवादित छायाचित्र(फोटो) देख कर अटपटा सा क्यों लगता है ? इसे यूँ समझिए - यदि ६ मित्र साथ बैठ कर भोजन कर रहे हों और यदि दो का भोजन शीघ्र हो जाए तो सभ्य समाज में इन दोनों का पहले उठ जाना शिष्टाचार के विरुद्ध माना जायेगा। इन दो मे से एक कोई बाहर वाला हो जिसे अपने यहाँ के रिवाज ना पता हो तो उसे कोई कुछ नहीं बोलेगा, परन्तु अपने यहाँ के, 'अपने' मित्र का ऐसा करना अवश्य खटकेगा। - सामान्य जनता के लिए तो यही प्रोटोकॉल है। सेना के जब विविध पदों की ही विस्तृत जानकारी कोई सिविलियन ना दे पायेगा, तो प्रोटोकॉल का घंटा पता होगा! अब हामिद अंसारी की जगह 'हनुमंत तिवारी' भी होता तो तियाँ-पांचाँ हो कर ही रहता। इसमें अगर आप ये कहेंगे कि अंसारी जी के धर्म के कारण उन्हें टार्गेट किया गया, तो आप जैसे अखंड चूतिये(पाठक गण क्षमा करें, इससे उचित विशेषण मुझे नहीं मिला। मेरा शब्दकोष संकुचित है।) को मेरी मध्यमा का विनम्र नमन।
जनता क्यों प्रोटोकॉल पर भ्रमित हुई? इसे भी यूँ समझा जा सकता है कि यदि मैं किसी अपरिचित नगर में हूँ, तो मेरे गंतव्य तक पहुँचने के लिए मैं मार्ग में मिलने वालों से पूछूंगा, और एक नहीं चार-पाँच जनों से पूछूंगा। अब मुझे एक भला मानुष पूरब दिशा में जाने को कहे परन्तु बाकी के चार पश्चिम में तो मैं किसकी सुनूंगा? - यही जनता के साथ हुआ। चित्र में स्पष्ट रूप से चार लोग सलूट कर रहे हैं, ओड-मैन-आउट केवल दो ही हैं। इस बात को अब पूर्व उदाहरण से जोड़ लीजिये, जनता की क्या चूक? यहीं एक और रोचक मोड़ आ जाता है इस पूरे विवाद में - तो क्या मोदी जी, पर्रिकर जी की त्रुटि थी? - मतलब, क्या देशप्रेम से ओतप्रोत क्षणों में जब घर में बैठ टीवी पर ही ध्वजारोहण होते राष्ट्रगान सुन कर रोंगटे खड़े हो जाते हों, तब ध्वज को सलूट करना त्रुटि है? इसका उत्तर आप मन में चाहे जो रखें, परन्तु उन विचारों को शब्दों के रूप में प्रकट करने से पहले ध्यानपूर्वक पुनः सोच लीजियेगा। उत्तर पहेली से कम नहीं, जहाँ 'चित भी मेरी, पट भी मेरा, अंटी मेरे बाप की' वाली बात है।
पंछी चाहे सही दिशा में ही क्यों ना उड़ रहा हो, परन्तु यदि वह दिशा पवन के वेग के विपरीत होगी तो पंछी को कठिनाइयों का सामना करना ही पड़ता है। अंसारी जी ने ना केवल पवन से वेग के विपरीत उड़ान भरी, अपितु निर्विकार भी रहे। इसके लिए उन्हें नमन। तिरंगे को सलूट करना आवश्यक नहीं था, परन्तु अपेक्षित था। नहीं किया; किया होता तो प्रोटोकॉल तोड़ने पर मन में उनके लिए सम्मान आज कई गुना और बढ़ जाता। कहानी यहीं समाप्त नहीं होती, और दो अंक बाकी हैं। अगले अंक में पुनः उपराष्ट्रपति महोदय श्री हामिद अंसारी के विवाद से जुड़े गड़े मुर्दे उखाड़ूंगा। ये विवाद दिखने में एक लगे पर है रूसी गुड़िया, जिसमे एक के अंदर एक गुड़िया छिपी होती हैं। कुछ नए तत्थ और नए दृष्टिकोण ले कर तीसरा अंक होगा -
उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के आँगन में नाचते गड़े मुर्दों की कहानी
श्रृंखला -
१. (व्यंग) क्या उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी पर विवाद के पीछे आरएसएस का हाथ है ?
२. (सीधी बात) क्यों उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को सही होते हुए भी निंदा का सामना करना पड़ा?
३. (सीधी बात) उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के आँगन में नाचते गड़े मुर्दों की कहानी
विवाद हुआ और उसके पश्चात उपराष्ट्रपति जी "साँच को नहीं आँच" वाली बात चरितार्थ करते हुए निर्दोष सिद्ध हुए। जिन्होंने आरोप लगाये थे, उमें से कइयों से सार्वजनिक रूप से क्षमा भी मांग ली। बाकियों ने सोशल मीडिया पर किये हुए अपने पोस्ट हटा लिए। परन्तु कई बुद्धिजीवी यहीं शांत नहीं हुए। कुछ ने हामिद अंसारी जी का पहले बचाव और अब महिमामंडन करते हुए विवाद को उनके धर्म से जोड़ दिया। इन तथाकथित बुद्धिजीवियों का कहना था, चूँकि हामिद अंसारी एक 'धर्म विशेष' से हैं, उन्हें बलि का बकरा बनाया गया।सच पूछिये तो मन में घृणा उत्पन्न हो गयी मेरे। क्या हर बात को कम्युनल-सेक्युलर वाले चश्मे से देखना उचित है? क्या कल को कोई चोरी करता पकड़ा जाये तब भी उसके धर्म की बात की जाएगी? आज इस विवाद के कारणों को ढूंढने का प्रयास करेंगे। दोषी कौन है इसपर भी चर्चा होगी; व्यंग नहीं, सीधी बात!
गणतंत्र दिवस पर ध्वज को सलूट करने का प्रोटोकॉल क्या था यह तो अब तक सब को पता चल चुका है। सरल शब्दों में कहें तो अंसारी जी का प्रोटोकॉल के तहत सलूट करना आवश्यक नहीं था, आवश्यक सावधान मुद्रा में खड़े रहना था। सलूट करना केवल राष्ट्रपति के लिए आवश्यक था। वैसे बाकी किसी के लिए सलूट करना वर्जित भी नहीं था। माने, यदि आपका मन करे तो आप सलूट कर भी सकते हैं। इन तथ्यों के आधार पर सबने स्वीकार किया कि उपराष्ट्रपति महोदय पूर्णतया निर्दोष हैं। फिर भी विवादित छायाचित्र(फोटो) देख कर अटपटा सा क्यों लगता है ? इसे यूँ समझिए - यदि ६ मित्र साथ बैठ कर भोजन कर रहे हों और यदि दो का भोजन शीघ्र हो जाए तो सभ्य समाज में इन दोनों का पहले उठ जाना शिष्टाचार के विरुद्ध माना जायेगा। इन दो मे से एक कोई बाहर वाला हो जिसे अपने यहाँ के रिवाज ना पता हो तो उसे कोई कुछ नहीं बोलेगा, परन्तु अपने यहाँ के, 'अपने' मित्र का ऐसा करना अवश्य खटकेगा। - सामान्य जनता के लिए तो यही प्रोटोकॉल है। सेना के जब विविध पदों की ही विस्तृत जानकारी कोई सिविलियन ना दे पायेगा, तो प्रोटोकॉल का घंटा पता होगा! अब हामिद अंसारी की जगह 'हनुमंत तिवारी' भी होता तो तियाँ-पांचाँ हो कर ही रहता। इसमें अगर आप ये कहेंगे कि अंसारी जी के धर्म के कारण उन्हें टार्गेट किया गया, तो आप जैसे अखंड चूतिये(पाठक गण क्षमा करें, इससे उचित विशेषण मुझे नहीं मिला। मेरा शब्दकोष संकुचित है।) को मेरी मध्यमा का विनम्र नमन।
जनता क्यों प्रोटोकॉल पर भ्रमित हुई? इसे भी यूँ समझा जा सकता है कि यदि मैं किसी अपरिचित नगर में हूँ, तो मेरे गंतव्य तक पहुँचने के लिए मैं मार्ग में मिलने वालों से पूछूंगा, और एक नहीं चार-पाँच जनों से पूछूंगा। अब मुझे एक भला मानुष पूरब दिशा में जाने को कहे परन्तु बाकी के चार पश्चिम में तो मैं किसकी सुनूंगा? - यही जनता के साथ हुआ। चित्र में स्पष्ट रूप से चार लोग सलूट कर रहे हैं, ओड-मैन-आउट केवल दो ही हैं। इस बात को अब पूर्व उदाहरण से जोड़ लीजिये, जनता की क्या चूक? यहीं एक और रोचक मोड़ आ जाता है इस पूरे विवाद में - तो क्या मोदी जी, पर्रिकर जी की त्रुटि थी? - मतलब, क्या देशप्रेम से ओतप्रोत क्षणों में जब घर में बैठ टीवी पर ही ध्वजारोहण होते राष्ट्रगान सुन कर रोंगटे खड़े हो जाते हों, तब ध्वज को सलूट करना त्रुटि है? इसका उत्तर आप मन में चाहे जो रखें, परन्तु उन विचारों को शब्दों के रूप में प्रकट करने से पहले ध्यानपूर्वक पुनः सोच लीजियेगा। उत्तर पहेली से कम नहीं, जहाँ 'चित भी मेरी, पट भी मेरा, अंटी मेरे बाप की' वाली बात है।
पंछी चाहे सही दिशा में ही क्यों ना उड़ रहा हो, परन्तु यदि वह दिशा पवन के वेग के विपरीत होगी तो पंछी को कठिनाइयों का सामना करना ही पड़ता है। अंसारी जी ने ना केवल पवन से वेग के विपरीत उड़ान भरी, अपितु निर्विकार भी रहे। इसके लिए उन्हें नमन। तिरंगे को सलूट करना आवश्यक नहीं था, परन्तु अपेक्षित था। नहीं किया; किया होता तो प्रोटोकॉल तोड़ने पर मन में उनके लिए सम्मान आज कई गुना और बढ़ जाता। कहानी यहीं समाप्त नहीं होती, और दो अंक बाकी हैं। अगले अंक में पुनः उपराष्ट्रपति महोदय श्री हामिद अंसारी के विवाद से जुड़े गड़े मुर्दे उखाड़ूंगा। ये विवाद दिखने में एक लगे पर है रूसी गुड़िया, जिसमे एक के अंदर एक गुड़िया छिपी होती हैं। कुछ नए तत्थ और नए दृष्टिकोण ले कर तीसरा अंक होगा -
उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के आँगन में नाचते गड़े मुर्दों की कहानी
श्रृंखला -
१. (व्यंग) क्या उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी पर विवाद के पीछे आरएसएस का हाथ है ?
२. (सीधी बात) क्यों उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को सही होते हुए भी निंदा का सामना करना पड़ा?
३. (सीधी बात) उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के आँगन में नाचते गड़े मुर्दों की कहानी
अब सही चल पड़ा है ये लेख , waiting for next part ..
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