२०१४ साल राजनैतिक उठा-पटक से परिपूर्ण रहा, और उसी उठा-पटक में ही ना केवल मेरी, अपितु कई लोगों के सबसे प्रिय क्षण बसते हैं। २०१४ ने कई दिग्गजों के दम्भ को चूर-चूर किया और कई 'क्रन्तिकारी' बड़बोलों की असलियत को जनता के समक्ष भी लाया। इसी राजनैतिक उठा-पटक में भारत की युवा पीढ़ी जो राजनैतिक विचार-विमर्श से दूर ही रहती थी, वह अब विशेष रूचि लेने लगी थी....यहाँ तक कि इन्हीं राजनैतिक वाद-विवादों के कारण कई मित्र एक दूजे को 'आदरसूचक विशेषणों' से पुरस्कृत करते पाये गए।
२०१४ के पूर्वार्ध(first half) में ही मणिशंकर अय्यर ने किसी को 'चायवाला' कह कर अपमानित करने का प्रयत्न किया था। बचपन में पढ़ा था -
"तिनका निंदा ना करिये जो पाँव तले पड़े होय,
कब उड़े आँखीं पड़े, पीर घनेरी होय।"
काश अति-विद्वान श्री मणिशंकर अय्यर जी को किसी ने यह छोटी सी बात बताई होती तो कदाचित वे अपने विरोधियों के हाथ में अपनी ही 'जान' का दुश्मन स्वरुप ब्रह्मास्त्र ना दे बैठते।
२०१४ के मेरे प्रिय क्षणों में से कुछ तो तब के हैं जब लोकसभा चुनाव नतीजे देख कर अर्नब गोस्वामी अपनी कुर्सी से ६ इंच ऊपर उछल पड़ा और घोषणा किया कि देश में मोदी लहर नहीं, मोदी सुनामी थी ! तदोपरांत महोदय अर्नब मनीष तिवारी की ओर मुँह कर के बोले कि भले कांग्रेस को ये भाये या ना भाये, परन्तु नरेंद्र दामोदरदास मोदी भारत के प्रधान मंत्री हैं। इसी नाते अब वे आपके भी प्रधानमन्त्री हुए, नहीं? और तिवारी जी के मुखारविंद पर जो भाव थे.... आहहाहा! मतलब उस भाव को देख कर जो ब्रह्मानंद की प्राप्ति हुई थी बस्स्स बता नहीं सकते ! कोई कितना भी सभ्य बन जाए, कितनी ही इंटेलेक्चुअल बकैती पेल ले; पर इस संसार के कई अटल सत्यों में से एक ये भी है कि विजयश्री का आनंद तब तक अधूरा ही रहता है जब तक आप अपने विरोधियों के लटके हुए थोबड़े ना देख लें। बाकी चाहे जो कोई कुछ बोल ले, सब दिखावा है।
२०१४ के मेरे प्रिय क्षणों में से कुछ तो तब के भी हैं जब अपने 'मोटा भाई' पहली बार संसद में प्रवेश कर रहे थे। सीढ़ी चढ़ने से पहले मोटा भाई ने अपना मस्तक भूमि पर धर दिया। यहीं हमारे भावों के सागर में आंधी आने लगी थी। फिर भीतर जब आडवाणी जी ने 'कृपा' शब्द का प्रयोग किया तब कुछ खटका, पर हम समझ रहे थे आडवाणी जी के भाव…कि वे भीतर से कैसे गद्गद रहे होंगे वे। जिस भाजपा को संसद में केवल दो सीटें मिली थी, आज वही अपने बलबूते सरकार बनाने में सक्षम थी - जो बीज आडवाणी जी, अटल जी और अन्य वरिष्ठों ने बोया था आज वह विशाल वटवृक्ष बन गया था! … और फिर आये मोटा भाई। बोलते-बोलते वो वहाँ सिसक पड़े और यहाँ आदर-प्रेम-सम्मान से अपनी भी आँखें बस छलकने को थीं। लौंडे हैं हम, जानते हैं कि ये रोना-धोना शोभा नहीं देता, इसलिए स्वयं को सम्हाल लिए। घर में मिठाइयाँ काम ही लाइ जाती है हमारे, पर उस दिन देसी घी का हलवा बना था।
तदोपरांत याद आते हैं वो क्षण जब अपने मोटा भाई जिन्हें अमरीका वालों ने कभी वीसा देने से मना कर दिया था। … जिनको वीसा ना देने की गुहार लगाते हुए कई भारत के ही 'सेकुलरिज़म के रक्षकों' ने हस्ताक्षर अभियान चलाया था और अमरीकी सरकार को पत्र लिख कर घर के झगड़े का मोहल्ले वालों के सामने कुकुर-विलाप किया था.... वही मोटा भाई अमरीका के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीयों को सम्बोधित कर रहे थे। गर्व से छाती फूल कर दोगुनी हो उठी थी, श्रद्धा से नतमस्तक थे हम ये देख कर कि अपने मोटा भाई केवल नीम्बू-पानी पी कर माँ जगदम्बे का नवरात्री का उपवास रखे हुए थे और फिर भी उनके मुखारविंद पर किंचित थकान के भाव नहीं थे।
क्षण तो वे भी भूले नहीं भुलाते जब पप्रेसिडेंट ओबामा को "केम छो मिस्टर प्राइम मिनिस्टर" कहते सुना, वाइट हाउस में 'गरबा' होते देखा। ऐसे ही और कई मन को एक ही समय गदगद करने वाले और गर्व से भर देने वाले क्षणों से पिछला वर्ष भरा रहा। हम लौंडे कदाचित अब एक-दो दिन इन्ही क्षणों को सूचीबद्ध करने में लगे रहेंगे - साँझ ढले, चाय की चुस्कियों पर ठहाके लगाते इन्हीं सब की चर्चा। पर हम सब को पता है, यदि पूरे २०१४ में से कोई एक ऐसी घटना, कोई एक ऐसा क्षण चुनना हो, जो सारी घटनाओं पर भरी पड़े, तो वह केवल वही क्षण होगा जब हम सभी टीवी पर यह वाक्य देख-सुन रहे थे -
२०१४ के पूर्वार्ध(first half) में ही मणिशंकर अय्यर ने किसी को 'चायवाला' कह कर अपमानित करने का प्रयत्न किया था। बचपन में पढ़ा था -
"तिनका निंदा ना करिये जो पाँव तले पड़े होय,
कब उड़े आँखीं पड़े, पीर घनेरी होय।"
काश अति-विद्वान श्री मणिशंकर अय्यर जी को किसी ने यह छोटी सी बात बताई होती तो कदाचित वे अपने विरोधियों के हाथ में अपनी ही 'जान' का दुश्मन स्वरुप ब्रह्मास्त्र ना दे बैठते।
२०१४ के मेरे प्रिय क्षणों में से कुछ तो तब के हैं जब लोकसभा चुनाव नतीजे देख कर अर्नब गोस्वामी अपनी कुर्सी से ६ इंच ऊपर उछल पड़ा और घोषणा किया कि देश में मोदी लहर नहीं, मोदी सुनामी थी ! तदोपरांत महोदय अर्नब मनीष तिवारी की ओर मुँह कर के बोले कि भले कांग्रेस को ये भाये या ना भाये, परन्तु नरेंद्र दामोदरदास मोदी भारत के प्रधान मंत्री हैं। इसी नाते अब वे आपके भी प्रधानमन्त्री हुए, नहीं? और तिवारी जी के मुखारविंद पर जो भाव थे.... आहहाहा! मतलब उस भाव को देख कर जो ब्रह्मानंद की प्राप्ति हुई थी बस्स्स बता नहीं सकते ! कोई कितना भी सभ्य बन जाए, कितनी ही इंटेलेक्चुअल बकैती पेल ले; पर इस संसार के कई अटल सत्यों में से एक ये भी है कि विजयश्री का आनंद तब तक अधूरा ही रहता है जब तक आप अपने विरोधियों के लटके हुए थोबड़े ना देख लें। बाकी चाहे जो कोई कुछ बोल ले, सब दिखावा है।
२०१४ के मेरे प्रिय क्षणों में से कुछ तो तब के भी हैं जब अपने 'मोटा भाई' पहली बार संसद में प्रवेश कर रहे थे। सीढ़ी चढ़ने से पहले मोटा भाई ने अपना मस्तक भूमि पर धर दिया। यहीं हमारे भावों के सागर में आंधी आने लगी थी। फिर भीतर जब आडवाणी जी ने 'कृपा' शब्द का प्रयोग किया तब कुछ खटका, पर हम समझ रहे थे आडवाणी जी के भाव…कि वे भीतर से कैसे गद्गद रहे होंगे वे। जिस भाजपा को संसद में केवल दो सीटें मिली थी, आज वही अपने बलबूते सरकार बनाने में सक्षम थी - जो बीज आडवाणी जी, अटल जी और अन्य वरिष्ठों ने बोया था आज वह विशाल वटवृक्ष बन गया था! … और फिर आये मोटा भाई। बोलते-बोलते वो वहाँ सिसक पड़े और यहाँ आदर-प्रेम-सम्मान से अपनी भी आँखें बस छलकने को थीं। लौंडे हैं हम, जानते हैं कि ये रोना-धोना शोभा नहीं देता, इसलिए स्वयं को सम्हाल लिए। घर में मिठाइयाँ काम ही लाइ जाती है हमारे, पर उस दिन देसी घी का हलवा बना था।
तदोपरांत याद आते हैं वो क्षण जब अपने मोटा भाई जिन्हें अमरीका वालों ने कभी वीसा देने से मना कर दिया था। … जिनको वीसा ना देने की गुहार लगाते हुए कई भारत के ही 'सेकुलरिज़म के रक्षकों' ने हस्ताक्षर अभियान चलाया था और अमरीकी सरकार को पत्र लिख कर घर के झगड़े का मोहल्ले वालों के सामने कुकुर-विलाप किया था.... वही मोटा भाई अमरीका के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीयों को सम्बोधित कर रहे थे। गर्व से छाती फूल कर दोगुनी हो उठी थी, श्रद्धा से नतमस्तक थे हम ये देख कर कि अपने मोटा भाई केवल नीम्बू-पानी पी कर माँ जगदम्बे का नवरात्री का उपवास रखे हुए थे और फिर भी उनके मुखारविंद पर किंचित थकान के भाव नहीं थे।
क्षण तो वे भी भूले नहीं भुलाते जब पप्रेसिडेंट ओबामा को "केम छो मिस्टर प्राइम मिनिस्टर" कहते सुना, वाइट हाउस में 'गरबा' होते देखा। ऐसे ही और कई मन को एक ही समय गदगद करने वाले और गर्व से भर देने वाले क्षणों से पिछला वर्ष भरा रहा। हम लौंडे कदाचित अब एक-दो दिन इन्ही क्षणों को सूचीबद्ध करने में लगे रहेंगे - साँझ ढले, चाय की चुस्कियों पर ठहाके लगाते इन्हीं सब की चर्चा। पर हम सब को पता है, यदि पूरे २०१४ में से कोई एक ऐसी घटना, कोई एक ऐसा क्षण चुनना हो, जो सारी घटनाओं पर भरी पड़े, तो वह केवल वही क्षण होगा जब हम सभी टीवी पर यह वाक्य देख-सुन रहे थे -
"मैं नरेंद्र दामोदरदास मोदी … ईश्वर की शपथ लेता हूँ कि …"
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