कृपया ध्यान दें : जो व्यक्ति विटामिन एस-ओ-एच अर्थात सेन्स ऑफ़ ह्यूमर के अभाव(डेफिशियेंसी) से ग्रसित हैं, उन्होंने तुरंत इस ब्लॉग से प्रस्थान कर लेना चाहिए। ऐसे व्यक्तियों द्वारा यहाँ लिखा हुआ पढ़ने पर गुदा में तीव्र जलन का अनुभव होना संभव है। तब भी यदि आप यह व्यंग आलेख पढ़ते हैं, तो कृपया इस आलेख के अंत में दी गई सूचना भी अवश्य पढ़ें। धन्यवाद _/\_
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बात ये है कि इस गणतंत्र दिवस पर वर्षा भी हुई। वातावरण में चहुंओर आर्द्रता(ह्यूमिडिटी) थी। उप राष्ट्रपति जी जब घर से लाल किले की ओर निकले तो मार्ग में उन्होंने अपनी कार की खिड़की खोल कर अपना दाहिना हाँथ बाहर निकाल कर लोगों का अभिवादन किया। लोग इतने उजड्ड हो गए हैं कि वे उलटे उप-राष्ट्रपति महोदय से पूछ बैठे, "ताऊ, तू है कौन और जे लाल बत्ती में बैठ कर खिड़की से हाथ निकाल कर क्यों हिला रहा है?"… मतलब लोगों की अज्ञानता की पराकाष्ठा(height) देखिये कि उन्हें यह भी ज्ञात नहीं कि उनके राष्ट्र के उप-राष्ट्रपति कौन हैं और कैसे दिखते हैं! साथियों, हो ना हो,इसके पीछे भी हमें आरएसएस की किसी गहरी साज़िश की बू आती है। खैर, अंसारी जी बड़े ही दयालु हैं, अतएव वे लोगों की इस अज्ञानता और धृष्टता(ऑडेसिटी) को क्षमा करते हुए अपने गंतव्य की ओर बढ़ चले। मार्ग में सब्ज़ी मंडी भी पड़ी तो अंसारी जी ने ताज़ी सब्ज़ी देख कर घर के लिए एक किलो टिंडे और आधे-आधे किलो भिंडी-तरोई आदि जैसी सब्जियाँ खरीद लीं। अब चूँकि बाहर सर्दी थी, अंसारी जी ने यह सारा कार्य कार में बैठे-बैठे पूर्ण किया। मुए सब्जीवाले भी आजकल सब्जी महंगी देते हैं (क्या यही हैं अच्छे दिन!), परन्तु उप राष्ट्रपति महोदय इतने कृपालु हैं कि उन्होंने तनिक भी भाव-ताव नहीं किया। यह सम्पूर्ण प्रकिया उन्होंने कार की दाहिनी खिड़की से पार लगाया। इन सारे क्रिया-कलापों के कारण अधिक मात्रा में आर्द्रता अंसारी जी की शेरवानी की दाहिनी बाँह(आस्तीन) में समा गयी, ठीक जिस प्रकार सेकुलरिज्म हम लोगों के मन के रेशे-रेशे में समाया हुआ है। अब जब परेड प्रारम्भ हुई तो ठण्ड के कारण यह आर्द्रता शीत से जम कर अकड़ने लगी, अर्थात फ्रीज होने लगी। जब तक ध्वजारोहण (फ्लैग होइस्टिंग) का समय आया, अंसारी जी की बाँह पूर्णतया लकड़ी सी कठोर हो चुकी थी। अब आप स्वयं गूगलिया कर देख लें उप राष्ट्रपति जी का फोटू, कितने कोमल से तो हैं! जमी हुई बाँह को उठाने का मतलब 'हैंडपंप' उखाड़ना होता। अब ये काम इन संघी गुंडों के लिए आसान होता, आखिर इन लोगों को इसी की तो शिक्षा दी जाती है। परन्तु किसी कोमल-ह्रदय अति-अहिंसावादी सेक्युलर बुद्धिजीवी से पूछिए कि यह कितना कठिन कार्य होगा। कम ही लोगों को पता है कि उनकी बांह इतनी जकड़ी हुई थी कि उनके नाक पर तीव्र खुजली होने पर भी वे उसे खुजा नहीं पा रहे थे।
अब अकड़ी हुई बांह लिए अंसारी जी परेशान तो थे परन्तु अनुभव एवं ज्ञान से उन्हें पता था कि उन्हें हाथ हिलाने की आवश्यकता नहीं होगी, अतएव परेड के अंत में रसोई में जा कर सिगड़ी पर हाथ सेंक कर बांह की अकड़न दूर कर लेंगे ऐसा उन्होंने विचार किया। वैसे आर्द्रता और शीत से जम तो पूरी शेरवानी ही गयी थी। इसलिए उप राष्ट्रपति महोदय सरलता से अटेंशन की मुद्रा में खड़े थे। परन्तु इन संघियों को पता नहीं कैसे किसी सेक्युलर की असहजता सहज दिख जाती है। कदाचित इन्हें इसकी भी कोई विशेष ट्रेनिंग दी जाती हैं। मोदी जी को पता नहीं कैसे यह पता चल गया कि उप राष्ट्रपति महोदय की शेरवानी जम कर ऐसी अकड़ गयी है मानों लोहे की बनी हो। उन्होंने इस बात की पुष्टि करने के लिए वहाँ उपस्थित दूसरे संघी, मने पर्रिकर जी को शेरवानी को खटखटा कर देखने के लिए भेजा। सारे कैमरों से छुपते-छुपाते पर्रिकर जी चुपचाप अंसारी जी के ठीक पीछे जा पहुँचे और जैसे किसी दरवाज़े को खटखटाते हैं, वैसे शेरवानी को 'नॉक' किया। ध्वनि तथा स्पर्श से मोदी जी के इस अंदेशे की पुष्टि हो ही गई। अब इन संघियों ने अपनी गहरी साज़िश के दूसरे चरण का कार्यान्वयन किया। जैसे ही ध्वजारोहण हुआ, मोदी जी और पर्रिकर जी ने आवश्यकता ना होते हुए भी ध्वज को सलूट जड़ दिया। उन्होंने अपनी साज़िश के तहत अपने आरएसएस वाले हाथ उठा लिए थे। अतएव इसमें कोई संदेह नहीं कि इस विवाद के पीछे आरएसएस का हाथ था! उपराष्ट्रपति महोदय अपनी अकड़ी हुई बांह के कारण हाथ ना उठाने के लिए विवश थे। उन्होंने इस साज़िश को नहीं समझा और फंस गए।
लोगों ने टीवी पर देखा कि मोदी जी, पर्रिकर जी, तथा राष्ट्रपति महोदय श्री प्रणव मुखर्जी जी भी सलूट कर रहे हैं; ओबामा और उनकी पत्नी बाहर वाले हैं, कदाचित उनके यहाँ ये प्रथा नहीं होगी पर अंसारी जी सलूट नहीं कर रहे! और इसपर लोगों ने बवाल मचा दिया। बिना बात निरपराध उपराष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी जी को भला बुरा कहने लगे। और इस प्रकार इन कम्युनल संघियों की एक और घिनौनी साज़िश सफल हो गयी।
साथियों, हमें तो संदेह यह भी है कि ओबामा जी भी इन दोनों संघियों से मिले हुए थे, इसीलिए यदि आप ध्यान से इस फोटो को देखेंगे तो पाएंगे कि मोदी जी, पर्रिकर जी और ओबामा जी के मुखमंडल पर मन्दहास्य बिखरा पड़ा है। सब मिले हुए जी! सारे भ्रष्ट और कम्युनल हैं जी! यही तो स्कॅम है साथियों, इसके लिए ही तो हम लड़ रहे हैं!
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कृपया ध्यान दें : हमारी आलोचना करने और गालियाँ देने से पूर्व इस श्रृंखला की आनेवाली दो कड़ियों को अवश्य पढियेगा।
हमें पता है है कि इस पूरे विवाद में उपराष्ट्रपति महोदय श्री हामिद अंसारी जी पूर्णतया निर्दोष हैं। पहले दिन उनपर आरोप लगे और सांझ ढलते तक वे दोषमुक्त हो चुके थे। परन्तु घटनाक्रम यहीं नहीं रुका। बाकी का विश्लेषण व्यंग नहीं सीधी बात की शैली में रखी जाएगी। परन्तु जान लें कि चूँकि अब इस विषय पर व्यंग/कटाक्ष करना 'पॉलिटिकली इनकरेक्ट' हो गया था, हमने इसपर व्यंग लिखना अपना कर्तव्य समझा। इस घटना से बहुत से निष्कर्ष निकलते हैं, जिन्हें अगले दो अंकों में लिखूंगा। किसी को ये ना लगे कि किसी के गली-गलौज (जो कि कुछ आहत भावनाओं के मारों से अपेक्षित है) मैं अगले दो अंकों में कुछ डर कर लिखूंगा, इसलिए पहले ही संभावित शीर्षक यहाँ दे रहा हूँ। अवश्य पढियेगा -
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