१४ जनवरी, १७६१ की मकर संक्रांति का दिन। पानीपत के खुले मैदान में सदाशिव राव भाऊ के नेतृत्व में कई माह भूख भोग चुकी मराठा सेना अन्न के अंतिम कण को मुंह में रख, मुख पर हल्दी मल 'हर हर महादेव' का जयघोष करती, अपने से कहीं विशाल अहमद शाह अब्दाली की सेना पर टूट पड़ी थी। भूख से मरने से श्रेयस्कर शत्रुसेना के छक्के छुड़ाते रणभूमि में वीरगति को प्राप्त होना स्वीकार था मराठों को। केवल शत्रुसेना से लड़ना ही लक्ष्य नहीं था, साथ आये तीर्थ-यात्रियों की रक्षा का भी भार ढोया था उन रणबांकुरों ने।
जहाँ एक ओर अब्दाली के साथ रोहिले अफ़ग़ान और अवध के शुजाउद्दीन दौला का संयुक्त मोर्चा था, वहीँ दूजी ओर महीनों की घेराबंदी के कारण भूखे-प्यासे मराठे मरने या मारने की ठान कर अकेले खड़े थे। पराजय निश्चित थी, पर मराठे इस प्रकार लड़े कि इस युद्ध ने अब्दाली की रीढ़ तोड़ी दी। फिर कभी अब्दाली पलट कर भारत आने के विषय में स्वप्न में भी नहीं सोच पाया।
युद्ध में बंदी बनाये गए मराठा सेना के तोपची इब्राहिम खान गार्दी को मारने के पहले नर्कयातनाएं इसलिए दी गईं क्योंकि उसने 'काफिरों' का साथ दिया था।
आज इतिहास में झांक कर देखें तो पानीपत के ३रे युद्ध से बहुत कुछ सीखने योग्य है। अहमद शाह अब्दाली तो बाहर का था पर शुजाउद्दीन दौला और इब्राहिम खान गार्दी यहीं के थे। 'शुजाउद्दीन दौलाओं' और 'जयचंदों' का सामना तो समय-समय पर करते रहे हैं और करते रहेंगे, पर इब्राहिम खान गार्दीयों को गले लगाने से चूकना भी पाप होगा। साथ ही ब्राह्मण वर्ग को जब तब गरियाने को ही बुद्धिजीवी होने की निशानी समझ लेने वाले जान लें कि मराठा सेना का नेतृव करने वाला अति साहसी वीर, सदाशिव राव भाऊ भी एक ब्राह्मण ही थे। (और ये भी जान लें कि इस ब्लॉग को लिखने वाला ब्राह्मण नहीं, ओबीसी वर्ग से आता है, अतएव 'ब्राह्मणवाद' का दोषारोपण करने से पहले १० बार सोच लीजियेगा)
जो कौम इतिहास को भुला देती हैं, उन्हें इतिहास भुला देता है। हमारे यहाँ के 'कौम-नष्टों' (कम्युनिस्टों) ने तो इससे भी अधिक चूतियापे (इनके कुकृत्यों के लिए इस से सटीक शब्द नहीं मिल पा रहा था) को अंजाम दिया है - इतिहास को भुलाना तो कम हानिकारक होता, इन्होंने इतिहास को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार जैसे चाहे वैसे तोड़ा-मरोड़ा है। आशा है कि भावी पीढ़ी इन त्रुटियों को ना केवल दोहराने से बचेंगी, अपितु इन्हें सुधरेंगी भी।
आज के इस पावन दिन पर उन सभी मराठा वीरों को नमन करते हुए आप सभी को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं।
एडमिन राजपूतो को गाली देने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते हो क्या ???????
ReplyDeleteएक तो वामपंथी को गालि दे रहा हैं उप्पर से उसी वामपंथ के इतिहास में जैचंद को गद्दार कहा गया हैं उसीको समर्थन भी कर रहे हो
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