हम तो ऐसे ही काका के फैन थे, फिर देखी काका की कालजयी "पुष्पा, आई हेट टीयर्स" वाली 'अमर प्रेम'। समाज की मुख्य-धारा मान्यताओं और अपेक्षाओं के ठीक विपरीत, ना केवल एक 'पतिता' वैश्या अपितु एक 'चरित्रहीन' पुरुष के मन और प्रेम के इस चित्रण ने भीतर तक छू लिया था। कितनी और फिल्में, कितनी और बातें ! जितनी बातें, उतनी यादें।
मनुष्य अच्छे-बुरे कर्मों से याद किया जाता है। जीवन बुराइयों को याद कर उन्हें कोसने के लिए बहुत छोटा है। काका के जीवन के अनेक रंगों से जो सबसे अधिक प्रेरणादायक हैं उन्हीं को चुन कर आज उन्हें याद कर श्रद्धांजलि दे रहे हैं … और वही उनका जीवन की फिलोसोफी से लबालब भरा मन्ना डे के स्वरों से सजा गाना सुन रहे हैं - "ज़िंदगी, कैसी है पहेली हाए... कभी ये हँसाए, कभी ये रुलाए…"
0 comments:
Post a Comment