१९७१ के युद्ध के बाद जब १६ दिसंबर १९७१ में पाकिस्तान की सेना ने भारत की सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था तब ९० से ९३ सहस्त्र पाकिस्तानी सैनिक युद्ध बंदी बनाये गए थे। शांतिपूर्ण शैली में शेष कार्य संपन्न किया गया, और इस प्रकार १९७२ में बांग्लादेश का जन्म हुआ।
१४ दिसम्बर को अपनी पराजय को सम्मुख खड़ा देख पाकिस्तानी सेना ने चुन चुन कर बंगाली डॉक्टरों, अध्यापकों तथा बुद्धिजीवियों की हत्या की। इनमे अधिकतर हिन्दू अल्पसंख्यक थे। युद्धविराम तक पाकिस्तानियों ने ३०००००० लोगों को मौत के घाट उतार दिया था; २ लाख से अधिक स्त्रियों का बलात्कार तथा असंख्य लोग विस्थापित हो चुके थे। पाकिस्तान ने बांग्लादेश के जन्म के पूर्व उसे एक भीषण आघात दे दिया था।
आज विजय दिवस मनाना इसलिए अत्यावश्यक हो जाता है कि लोगों को पता चले कि धर्म के आधार पर किया गया विभाजन किस प्रकार विध्वंसकारी सिद्ध हुआ। मुस्लमान बहुसंख्यक होते हुए पंजाबी-बांग्ला संघर्ष ही विघटन का कारण बना। आज भी पाकिस्तान में 'मुजहीरों' को सम्मान का स्थान प्राप्त नहीं हुआ है, बाकि धर्मावलम्बियों की तो बात ही छोड़िये। दुखद ये है कि भारत में कुछ नौजवान आज भी 'भटक' रहे हैं, आज भी धर्म के नाम पर जिहाद का पागलपन पाले हुए हैं और भयानक बात ये कि इनमें अब सुशिक्षित भी सम्मिलित हैं ! घावों पर नमक ये कि जिनपर समाज को सही मार्ग दिखाने का उत्तरदायित्व है, उनकी आँखों पर या तो 'पोलिटिकल करेक्टनेस' की पट्टी बंधी हुई है या तो धर्मान्धता की और प्रेस-मीडिया सज-संवर कर मंडी में खड़ी है। रंडाप को रंडाप कहने के लिए पिछवाड़े में गूदा किसी के नहीं; अधिकतर बस रोटियाँ सेंकने में लगे हैं।
जिन्हें ये लगता है यह केवल मुसलामानों को सीख लेने वाली घटना है तो वे घनघोर अँधेरे में हैं। चरमपंथ किसी के लिए भी घातक सिद्ध होगा, हिन्दुओं तथा सिखों के लिए भी ! दूसरे की घर की आग कब अपने घर तक पहुँच जाये, इसका कोई भरोसा नहीं होता। अतएव, पडोसी ने भले ही आपका कभी भला ना किया हो… भले ही वह आपको सताता रहा हो, पर आग लगी तो बुझाने जाना ही होगा। उसके भले के लिए नहीं, स्वयं के लिए। मनुष्य अपनी त्रुटियों से सीखता है, और बुद्धिमान मनुष्य दूसरों की त्रुटियों से। याद रखिये "२४ कैरट का सोना तो आभूषण बनाने के काम भी नहीं आता!" - इस बिंदु पर चिंतन-मनन कीजिये, यह एक वाक्य कई सत्यों की ओर संकेत करता है।
आज विजय दिवस मनाना इसलिए अत्यावश्यक हो जाता है कि लोगों को पता चले कि धर्म के आधार पर किया गया विभाजन किस प्रकार विध्वंसकारी सिद्ध हुआ। मुस्लमान बहुसंख्यक होते हुए पंजाबी-बांग्ला संघर्ष ही विघटन का कारण बना। आज भी पाकिस्तान में 'मुजहीरों' को सम्मान का स्थान प्राप्त नहीं हुआ है, बाकि धर्मावलम्बियों की तो बात ही छोड़िये। दुखद ये है कि भारत में कुछ नौजवान आज भी 'भटक' रहे हैं, आज भी धर्म के नाम पर जिहाद का पागलपन पाले हुए हैं और भयानक बात ये कि इनमें अब सुशिक्षित भी सम्मिलित हैं ! घावों पर नमक ये कि जिनपर समाज को सही मार्ग दिखाने का उत्तरदायित्व है, उनकी आँखों पर या तो 'पोलिटिकल करेक्टनेस' की पट्टी बंधी हुई है या तो धर्मान्धता की और प्रेस-मीडिया सज-संवर कर मंडी में खड़ी है। रंडाप को रंडाप कहने के लिए पिछवाड़े में गूदा किसी के नहीं; अधिकतर बस रोटियाँ सेंकने में लगे हैं।
जिन्हें ये लगता है यह केवल मुसलामानों को सीख लेने वाली घटना है तो वे घनघोर अँधेरे में हैं। चरमपंथ किसी के लिए भी घातक सिद्ध होगा, हिन्दुओं तथा सिखों के लिए भी ! दूसरे की घर की आग कब अपने घर तक पहुँच जाये, इसका कोई भरोसा नहीं होता। अतएव, पडोसी ने भले ही आपका कभी भला ना किया हो… भले ही वह आपको सताता रहा हो, पर आग लगी तो बुझाने जाना ही होगा। उसके भले के लिए नहीं, स्वयं के लिए। मनुष्य अपनी त्रुटियों से सीखता है, और बुद्धिमान मनुष्य दूसरों की त्रुटियों से। याद रखिये "२४ कैरट का सोना तो आभूषण बनाने के काम भी नहीं आता!" - इस बिंदु पर चिंतन-मनन कीजिये, यह एक वाक्य कई सत्यों की ओर संकेत करता है।
जिनको बात समझी वो ज्ञानी, आज के लिए बस इतनी ही कहानी।
विजय दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनायें।
विजय दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनायें।
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