कुछ लड़कों ने ISIS और पाकिस्तान की टीशर्ट पहनी। वो नासमझ थे ये हमने साबित किया

मुहर्रम के दिन से एक समाचार यत्र-तत्र-सर्वत्र दिखाई पड़ रहा है। जहाँ इस समाचार से राष्ट्रवादियों और 'भगवा आतंकवादियों' के नथुने फूल गए हैं, वहीं देश भर के सारे महान सेक्सुलर-लिबरल बुद्धिजीवी इस घटना को 'नासमझी-नादानी' कह रहे हैं। अब यदि सेक्युलर-लिबरल तथा बुद्धिजीवी वर्ग ने इस घटना पर 'क्लीन-चिट' दे ही दी है तो ये 'भगवा आतंकवादी' लोगों को क्या अधिकार बनता है कि वो चूं भी करें। आप सोच रहे होंगे कि मैं किस घटना की बात कर रहा हूँ, तो आपकी जिज्ञासा शांत करता हूँ। बात उन नासमझ एवं शांतिप्रिय लड़कों की है जिन्होंने मुहर्रम के दिन पाकिस्तान और आई एस आई एस की टी शर्ट पहन कर नृत्य किया था। बस मिल गया मौका इस कम्युनल लोगों को वातावरण दूषित करने का। असल कहानी तो समझे नहीं, बस करने लगे आक्षेप! साथियों, निर्मल बाबा की असीम कृपा से पाई हुई दिव्य दृष्टि से हमने भीतर के सत्य को ढून्ढ निकाला और अब युगपुरुष जी का प्रातःस्मरणीय नाम ले कर इस बात का खुलासा करने जा रहे हैं। अतएव, ध्यानपूर्वक इस गूढ़ रहस्य को पढियेगा।
हर धार्मिक उत्सव से कोई ना कोई कथा जुडी होती है, और हर कथा में नायक और खलनायक होते हैं। इन शांतिप्रिय लड़कों की मंशा एक नृत्य-नाटिका प्रस्तुत करने की थी, जिसमें इस टी शर्ट को पहन कर वे खलनायक का पात्र निभा रहे थे। परन्तु संघी-भाजपाई पत्रकार वहाँ आ धमके और अर्थ का अनर्थ कर डाला! ये तो रही भीतर की कहानी जिसे किसी ने जगजाहिर करने की हिम्मत ना की, पर ये महान सेक्युलर बुद्धिजीवियों के कथन के विपरीत है। अतएव इसपर लोगों को विश्वास करना तनिक कठिन ही होगा। पर चूंकि इन भोले-भाले लड़कों को निरपराध साबित करना हमारा परम उद्देश्य है, हम इस बिंदु पर भी तर्क देंगे।

यदि हम माने कि इन लड़कों को इन टी शर्ट को पहनने का सही भावार्थ नहीं पता था, तो यह भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्यों? क्या आपने कॉलेज के कूल-ड्यूड्स को 'चे गवरा' के चित्र वाली टीशर्ट पहने कभी नहीं देखा? इनमे से ९५% लौंडों को ये तक ना पता होगा कि इस फोटो वाले बन्दे का नाम क्या है, ये था कौन और इसने अपने जीवन में ऐसा कौनसा तीर मार लिया था कि इसकी फोटो चहुँओर दिखाई देती है। ऐसे ही एक बार एक 'कूल ड्यूड' को 'कर्ट कोबेन' के चित्र वाला टीशर्ट पहने देखा तो पूछा की ये कौन है भाई, तो उसे घंटा पता ना था कि ये कौन था। दुसरे को पूछा तो जवाब मिला कि ये 'निर्वाना' है। दिया हमने घुमाकर कंटाप और बताया कि इस लौंडे के बैंड का नाम 'निर्वाना' था, इसका नाम  'कर्ट कोबेन' है। भाग फूटे थे हमारे जो हमने ज्ञान दिया। सामने वाले ने पूछा,
"फिर तो लड़की हुई ना?"
"मलबल?"
"हेतल बेन, सेजल बेन … वैसे ही कर्टको बेन, ये तो कोई गुजरती लड़की का नाम हुआ।" और इसी के साथ हमने अपना माथा बगल की दीवार पर दे मारा और तत्पश्चात सामने वाले के समक्ष साष्टांग दंडवत हो गए। इसके अगली बार कोई लौंडा काली जीन्स, काले गोगल और काली 'कर्टको-बेन' वाली टीशर्ट पहने, एक अजीब-अतिविशिष्ट प्रकार की दाढ़ी बढ़ाये और कान में ईयर-फ़ोन ठूंसे, सधे ताल पर अपनी गर्दन को दसो-दिशाओं में मटकता पटकता दिखा। मेरे मन में आशा जाएगी कि कदाचित इसे तो पता होगा ही। हमने पूछा, 
"क्षमा करियेगा 'ड्यूड-महोदय', क्या आप मुझे आपके टीशर्ट पर किसका चित्र है, इसकी जानकारी दे सकते हैं?"
पहले तो उस लौंडे ने कान से अपने 'श्रवण यंत्र' निकाल कर हमसे प्रश्न दुबारा उचारने के लिए कहा, और प्रश्न सुनते ही हमें बड़ी तिरस्कृत और घृणित ढंग से देखा, जैसे हमेने इस व्यक्ति के विषय में जानकारी ना मांगी, उस से उसका कच्छा मांग लिया हो! हमें अनुग्रहित (oblige) करते हुए 'ड्यूड-महोदय' अंग्रेजी उच्चारण में हिंदी में बोले (आहाहा! अंग्रेजी उच्चारण में मातृभाषा का गौरव ही बढ़ जाता है, नहीं?) 
"लुक ड्यूड, ये कर्ट कोबेन है, मेरे फेवरेट रॉक-आर्टिस्ट।" (नहीं नहीं, शिल्पकार नहीं हैं, एक विशिष्ट संगीत पद्धति को 'रॉक' कहते हैं।)
इस उत्तर से ह्रदय को शीतलता मिली कि किसी को तो ये पता है कि उसने जो चित्र अपनी छाती से चिपका रखा है वो कौन है! मैंने अति-उत्साह में प्रश्न कर डाला,
"पाषाण-संगीत अर्थात 'रॉक-म्यूजिक' की किस शैली/जनर के थे उनके गीत?"
"हार्ड-रॉक...?",'ड्यूड-महोदय कुछ नर्भसियाए से बोले।
इस बार कंटाप पूरे ३६० अंश(degree) कोण पर घुमा कर रसीद किया गया,
"भेण के ताऊ, 'ग्रंज' जनर! जब पूरा ज्ञान अपनी ख़ोपड़िया की गगरी में समेट लेना, तब अभिमान की टोपी पहनना। और तब भी किसी को तिरस्कृत दृष्टि से देखने की भूल कतई ना करना।अधूरे ज्ञान पर नाक ऊंची करने वाले प्रायः धूल चाटते हैं। के समझे?"

तो इस प्रकार ये बात सिद्ध होती है कि टीशर्ट पर चाहे किसी का भी चित्र क्यों ना अंकित हो, उस से पहनने वाले की सोच का घंटा कोई लेना-देना होता है। बस 'कूल' दिखने के चक्कर में ऐसे टीशर्ट पहने जाते हैं। पर इस मंथन में ये कहाँ आ पहुंचे हम? ये मैं क्या बोल गया? 

यदि कर्ट कोबेन और चे गवारा के चित्रों वाले टीशर्ट 'कूल' दिखने के लिए पहने जाते हैं तो आई इस आई इस और पाकिस्तान के टीशर्ट से 'कूल' होने का क्या सम्बन्ध? किसी वस्तु या शैली अथवा गुण  के 'कूल' होने में बहुत बड़ा योगदान सामाजिक सोच का भी होता है। कोई व्यक्ति अपने किसी आदर्श(idol) के फैशन का अनुसरण करते हुए 'कूल' दिखने के प्रयत्न करता है। जिन गुणों-पहनावों को दूसरे लोग, विशेषतः किशोर-किशोरियां आकर्षक पाते हैं वही 'कूल' बन जाता है। तो जहाँ एक ओर उन 'नासमझ' लड़कों को हम इन तर्कों द्वारा आरोपमुक्त कर रहे हैं, वहीँ ये गंभीर प्रश्न स्वयं खड़े हो रहे हैं। क्या उन लड़कों के आस-पास का समाज इन टीशर्ट को 'कूल' मानता है?… 
ओत्तेरी! ये तो खजूर से गिरे और आसमान में अटके वाली बात हो गई! धत्त तेरे की!
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1 comments:

  1. too good yaar.. :D

    aapke lekh bohot achche hote hai.
    waiting for next....

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