क्यों ताज महल चाज़म खान के हवाले कर दिया जाना चाहिए?


साथियों, मुझे बड़ा दुःख होता है जब भी ये संघी-भाजपाइयों के हाथों बिकी हुई मीडिया किसी महान सेक्युलर और समाजवादी नेता की छवि और चरित्र को हानि पहुँचाने की चेष्टा करती है। ये लोग सदा ही चोवैसी और चाज़म खान जैसे सेक्युलर नेताओं की बात को तोड़ मरोड़ कर दर्शाते हैं। और इसी श्रृंखला में नवीनतम उदाहरण है चाज़म खान जी के ताज महल वाले वक्तव्य का मीडिया द्वारा तिल का ताड़- राई का पहाड़ और कुत्ते का ऊँट बनाना! बात तो चाज़म खान जी ने प्रशंसनीय की थी परन्तु इस बिकाऊ मीडिया ने उसे क्या का क्या बनाडाला! जब हमारे विश्वस्त सूत्रों से हमें अन्दर की बात का पता चला तो हम चाज़म जी में गुड़गांड...अररर मेरा मतलब गुणगान किये बिन ना रह पाए। साथियों, जब बिकाऊ मीडिया झूठ का रायता फैला कर सेक्सुलारिस्म की माँ...मेरा मतलब है...जब सेकुलरिज्म को हानि पहुँचाने लगे तो 'मफ्लर मैन' के सच्चे भक्तों का यह उत्तरदायित्व बन जाता है की वह ऐसे हर सच का स्वयं 'खुलासा' करे। हमारे पाठकगण भली भांति हमारे इस प्रयास से अवगत रहे हैं; आज भी हम इसी दिशा में एक और पग बढ़ा रहे हैं। तो ध्यान दे पढ़िए चाज़म खान जी की महानता का बखान।

बात उत्तर प्रदेश के समाजवादी लौंडों की 'गलती' से आरंभ होती है। बाकी की जनता तो सम्हली हुई है...पर कुछ लौंडे 'समाजवाद की क्रांति' लाने के चक्कर में कभी कुछ 'गलती' कर जाते हैं। अब जवान लौंडे हैं...ऊपर से समाजवादी हैं...तो ये लोग गलती नहीं करेंगे तो क्या ये सठियाये हुए भगवा आतंकवादी संघी-भाजपाई करेंगे? अब यदि गलती हो गई तो क्या आप उन्हें फांसी पर लटका दीजियेगा? चुलायम सिंह जी के इन्ही विचारों को उनके परम मित्र सेक्युलर शिरोमणि चाज़म खान जी ने आगे बढाते हुए यह पता लगाने का बीड़ा उठाया कि समाजवादी लौंडों की गलतियों को कैसे सुरक्षित माहौल प्रदान किया जा सकता है.…कैसे गलतियों के लिए सही 'साथ' और जगह मुहैय्या करवाई जा सकती है। इस कार्य हेतु चाज़ाम जी ने अकबर जैसे महान शासकों का अनुसरण करते हुए रात्रि-भ्रमण पर स्वयं निकलना प्रारम्भ किया। उन्होंने स्वयं अँधेरी गलियों, रौशन मुहल्लों में घूम घूम कर सही 'साथ' एवं जगहों का निरिक्षण किया। इस कार्य की कालावधि में समाजवादी लौंडों की गलतियों को कुछ समय के लिए नियंत्रित करने के लिए एक बोर्ड का गठन किया। उत्तर भारत में एक चलन है कि किसी अत्यंत आत्मीय का नाम लेते समय उसके आगे 'वा' जोड़ दिया जाता है; उदाहरणार्थ चाज़ाम जी चुलायम जी को 'चुलायमवा' और चुलायम जी चाज़ाम जी को 'चज़मवा' कह कर पुकारते हैं। चूँकि चाज़ाम जी का समाजवादी लौंडे अत्यंत प्रिय हैं, तो उनके लिए बनाया गया बोर्ड भी उनके ह्रदय के अत्यंत निकट है, अतएव इस बोर्ड के नामकरण के लिए 'गलती' को अंग्रेजी में जो कहते हैं उसके पश्चात 'वा' जोड़ कर नाम की उत्पत्ति की गयी। अर्थात इस बोर्ड का नाम फक'वा बोर्ड रखा गया ! वहीँ दूसरी और चाज़म जी ने उन स्थलों की पहचान कर ले थीं जहाँ समाजवादी लड़कों की क्रन्तिकारी गलतियों को सही दिशा दी जा सकती थी, जहाँ गलतियाँ करने के लिए उपयुक्त 'साथ' 'सज-ओ-सामान' के साथ यदि उपलब्ध कराये जाएँ तो लड़कों का 'जोश' भी ठंडा हो जायेगा और इस संघियों के सतहों बिकी हुई मीडिआ को छाती पीटने का अवसर भी नहीं मिलेगा। एक तीर से दो निशाने!
गलती करने जाता हुआ क्रन्तिकारी लड़का 
आप अब यह सोच रहे होंगे कि इस सब का चाज़म जी के ताज महल वाले वक्तव्य से क्या लेना-देना? इसी रहस्य का तो 'खुलासा' अब होगा! जैसा कि हम ने पहले बताया की चाज़म जी ने स्वयं अनेक जगहों का निरिक्षण कर के उनमें से 'लें-देन' के लिए सबसे उपयुक्त स्थल का चुनाव किया था और इसी जगह का नाम था 'ताज महल होटल'! ना-ना, ये मुंबई वाला होटल नहीं है। उत्ता-पदेस के कई नगरों में ऐसे कई छोटे-छोटे 'ताज महल होटल' अनेक प्रतिभावान एवं क्रन्तिकारी लड़कों को अपनी गलती सही ढंग से करने के लिए स्थान तथा साथ उपलब्ध करवाते हैं। वो अपनी सुविधानुसार जिस लिंग विशेष के साथ, जैसी गलती करना चाहें, करने पूर्णरूपेण स्वतंत्र होते हैं। तो सेक्युलर शिरोमणि चाज़म जी ने यही कहा कि इन 'ताज महल' को इनके द्वारा गठित 'फक्वा' बोर्ड के न्यस्त/आधीन/entrust कर देना चाहिए जिससे यह बोर्ड अपने सभी क्रन्तिकारी लड़के जो 'गलती' करने के इच्छुक हों को 'साज-ओ-सामान' के साथ स्थान भी उपलब्ध करा सके। बस! मिल गया अवसर इन बिकाऊ मीडिया वालों को और कर दिया इन्होने अर्थ का अनर्थ। फक्वा को बना दिया वक़्फ़ और ताज महल होटलों को बना दिया ताज महल। बस पक गयी मसालेदार खिचड़ी और लगा दिया इन्होंने तड़का!

साथियों, हम तो चाज़म जी के इस समाजवादी शौच… अररर मेरा मतलब सोच के प्रशंसक हो गए ! कितनी मॉडर्न सोच है! ये संघी-भाजपाई आज तो क्या सहस्त्रों वर्षों में भी इतनी उन्नत सोच नहीं रख पाएंगे। ऐसी दिव्य सोच को हमारा प्रणाम। आज तो 'जय साईकिल, जय समाजवाद' के नारे लगा ही दो सब मिल कर!
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