बाबा रामपाल को गिरफ्तार करने गई पुलिस ने क्यों पीटा मीडिया वालों को?

मित्रों और सहेलियों... आज हर समाचार चैनल पर एक ही बात छाई हुई है - कि बाबा रामपाल को गिरफ्तार करने गई पुलिस ने बड़ी निष्ठुरता से मीडिया वालों को दौड़ा दौड़ा कर पेला है। सुनने में तो यहाँ तक आया है कि कई मौकों में पुलिसियों ने पहले तो धोखे से इन लोगों को पुचकार कर 'खोपचे' में बुलाया और फिर जो बताशों की सिंकाई की है...उफ़! साथियों, इन संघी-भाजपाइयों के हाथ में हरयाणा की सत्ता आई नहीं कि इन्होने पुलिसवालों को भी अपने ही रंग में रंग दिया। अब ये संघी पुलिसिये इन बेचारे मीडिया वालों के साथ भी वही निर्ममता दिखा रही है जो वो बेचारे क्रन्तिकारी आपियों को दिखाती थी। माना कि मीडिया वाले स्वयं भ्रष्ट हैं...दोगले हैं...कमीने इतने हैं कि मरे हुए के मुंह में माइक घुसेड कर पूछते हैं कि "आप कैसा फील कर रहे हैं"...पर ये क्या बात हुई कि आप इनको भगा-भगा कर इनकी लंगोट खींच लेंगे और फिर इनके 'अनियंत्रित' नितम्बों पर चांटों और लाठियों की बरसात करके उनको पहले लाल, फिर नीला और फिर काला पाड़ देंगे! मने, इंसानियत नाम की भी चीज़ होती है भई।
कुछ लोग दबी ज़बान में कह रहे हैं कि कल तक मीडिया के पुलिस वालों के बाबा रामपाल पर हमला ना करने पर "क्या पुलिसवालों ने हाथों में चूड़ियाँ पहन रखी हैं?" जैसे डायलाग पर खीज कर पुलिसियों ने ये कदम उठाया है। मतलब यदि कोई आपकी मर्दानगी पर बिना बात प्रश्नचिन्ह लगाये तो आप इस प्रकार हिंसक हो जायेंगे? ये नहीं चलेगा! इसकी शिकायत हम आमिर खान जी से करेंगे और उनसे इस पर 'असत्यमेव जयते' का नया एपिसोड बनाने की प्रार्थना करेंगे। इन पुलिसियों को पता होना चाहिए कि #ARealMan अर्थात असली पुरुष वही है जो चाहे कोई उसपर बेमतलब थूक ही क्यों ना दे, पर वो कतई क्रुद्ध नहीं होगा। और इसी नाते हर आपिया और कोंग्रेसी उच्च कोटि के पौरुष के धनि हैं! ये संघी-भाजपाई जो हर मान-सम्मान की बात पर मर-मिटने को तुल जाते हैं, इन्हें आपियों और कांग्रेसियों से पौरुष का क्रेश कोर्स लेना चाहिए।

कुछ लोग यह भी प्रश्न उठा रहे हैं कि बाबा रामपाल को निपटाने के बाद क्या सरकार इमाम बुखारी पर जो वारंट हैं उनकी भी सुध लेगी? क्या इन लीगों को भारत के सेक्युलर ढांचे को क्षति पहुँचने का तनिक भी भय नहीं? यदि बुखारी साहब को हाथ भी लगाया गया तो हमारे सेकुलरिज्म की धज्जियाँ नहीं उड़ जाएँगी? हमारा सेकुलरिज्म अत्यंत कोमल है, तनिक ठेस लगी तो बिखर जायेगा। अतएव हमें उसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। इमाम भिखारी...अररर मेरा मतलब इमाम बुखारी सेक्युलर हैं, अथवा उन्हें वारंटों-सम्मनों की ऐसी-तैसी करने का पूरा अधिकार है।
पुलिस अपना काम कर रही थी और मीडिया वाले अपना। दुर्गरूपी आश्रम को भेदने के लिए पुलिस जैसे ही आगे बढ़ रही थी, वैसे ही आश्रम की दीवारों पर सवार बाबा रामपाल के भक्तजन पेट्रोल बम तथा पत्थरों की बौछार कर रहे थे। जैसे ही पत्थर निकट आते, मीडियावाले पुलिसियों के पीछे छुप जाते। मीडियावालों की सुरक्षा का दायित्व भी पुलिस वालों पर ही था। पर जब स्वयं अपनी सुरक्षा की रेड पिट रही हो तो किसी और की लंगोट कोई कैसे सम्हाले? ऊपर से पुलिस वाले जो कुछ कर रहे थे वह मीडिया वाले टीवी पर लाइव दिखा रहे थे। आश्रम में बाबा के अति-चतुर अनुयायी टीवी पर सब देख रहे थे और पुलिस वालों की कार्यवाही से आसानी से निपट रहे थे। एक तो पहले ही बोझ बने हुए थे मीडियाकर्मी, ऊपर से इनकी रिपोर्टिंग जब दूसरे पक्ष की सहायता करने लग जाए तो खीज होना तो स्वाभाविक है ही! पर क्या यही वजह थी कि पुलिसियों ने मीडियावालों की कम्बल-कुटाई कर दी?

अब आते हैं मुख्य मुद्दे पर। साथियों, हमने हरी चटनी वाले निर्मल बाबा की असीम कृपा से पाई हुई दिव्य दृष्टि से अन्दर की बात का पता लगाया कि आखिर क्यों हरयाणा पुलिस ने मीडिया कर्मियों को कुत्ते की तरह मारा। इस बात को समझने के लिए पहले समझिये कि क्यों अभिनेता अर्जुन रामपाल हरयाणा पुलिस के अति प्रिय हैं। आप कोई भी फिल्म देख लीजिये...चाहे सीन कितना भी ह्रदय विदारक ही क्यों ना हो...चाहे कितना ही करुण रस से ओत-प्रोत क्यों ना हो...और चाहे थिएटर में बैठी जनता सिसक-सिसक कर ही क्यों ना रो उठे...पर अभिनेता अर्जुन रामपाल के मुखमंडल पर तनिक भाव प्रकट ना होते हैं। है कोई माई का लाल जो अर्जुन रामपाल जी के मुख पर कोई भाव प्रकट कर के दिखा दे! "मर्द को दर्द नहीं होता" तथा "लड़के रोते नहीं" वाली पौरुषपूर्ण बातों को जैसे उन्होंने अपने जीवन में आत्मसात कर लिया हो। अतएव अपने नाम 'अर्जुन' को चरितार्थ करते हुए यही हैं पूर्ण पुरुष! हरयाणा वाले इनकी इसी बात पर मर मिटते हैं और इसी कारण हरयाणा पुलिस अर्जुन रामपाल जी को अपना आदर्श मानती है। अब हुआ ये कि इन मीडिया वालों ने 'रामपाल' के आगे ना 'संत' लगाया, ना 'बाबा'। ऐसी स्थिति में जब सवेरे अर्जुन रामपाल ने 'रामपाल' नाम अपने समाचार पत्र में देखा तो प्रसन्नता से उछल पड़े। पूरा समाचार पढ़े बिना उन्होंने ये समझ लिया कि आख़िरकार उनके भाग्य ने करवट ली और वो चमक उठे हैं। इसी चक्कर में उन्होंने शाम को पार्टी रख लोगों को उसके लिए निमंत्रण भी भेज दिए।वैसे तो अधिकतर बॉलीवुड सेलेब्रिटीयों का बौद्धिक स्टार आलिया भट्ट सामान ही है, अतएव बाकियों को भी विश्वास हो गया की अर्जुन रामपाल अब नामचीन हो गए हैं, इसलिए हर कोई उनकी चाटुकारिता में लगा हुआ था। पर जब पार्टी समाप्त हो कर सभी चले गए तो अर्जुन रामपाल जी के रसोइये ने उनके समक्ष डरते हुए असल बात का रहस्योद्घाटन किया। बस फिर क्या था , किसी बॉलीवुड हेरोइन की तरह अर्जुन जी दौड़ते हुए अपने शयन कक्ष गए, अपनी शैया/पलंग पर कूदे और अपने तकिये को पाकर कर फफक-फफक कर रोये हैं। यदि इन मीडियाकर्मियों ने रामपाल के साथ 'बाबा' जोड़ दिया होता तो यह अप्रिय घटना ना घटती। एक बार पुलिसियों ने मीडिया द्वारा किया गया अपना अपमान भुला भी दिया होता, पर  अपने प्रिय बॉलीवुड अभिनेता को हुई इस असीम पीड़ा को भुला पाना उनके लिए असंभव था। इसीलिए मौका हाथ लगते ही जो दौड़ा-दौड़ा कर जुतियाया है उन्हें कि बेचारे दिन भर अपनी दुखी व्यथा खुद के टूटे कैमरों पर बांचते रहे !

इसलिए कहते हैं मित्रों, चाहे जो करना, पर किसी हरयाणवी के साथ भूले से भी पंगा मत लेना। ये मारते नहीं … दौड़ा-दौड़ा कर मारते हैं !

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4 comments:

  1. रामपाल को गिरफ्तार करना ही था , लेकिन पहले दिन कर लेते तो
    "आजतक" वालों की कुटाई कैसे करते -
    बिकाऊ मीडिया वाले भी कूट लिए , राम पाल भी गिरफ्तार हो गया ...
    इसको कहते हैं - "एक तीर से दो शिकार करना "

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    1. हाहा, सत्यवचन बंधू! बस थोड़ी और कुटाई देखने की इच्छा मन में रह गयी। आशा करता हूँ कि इसका भी शीघ्र ही प्रबंध/निवारण हो जायेगा ;)

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  2. Hilarious.....rofl...... Sarcasm @ it's best! Just hope that Arjun Rampal should never read this article else he'll commit suicide..... ;)

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