मित्रों और सहेलियों, आज सवेरे से ये अदानी और अम्बानी के हाथों बिके हुए मीडिया वाले और ये संघी-भाजपाई और कांग्रेसी सब एक हो कर हमारे 'कौले' से बेचारे कुमार बकवास के पीछे पड़े हुए हैं। इनकी अंट-शंट बातों के करण परेशान बेचारे कविवर अपनी कविताओं में ठीक से राइम भी नहीं कर पा रहे हैं। इन सब को तो हमारे परम ज्ञानी कविराज की प्रशंसा करनी चाहिए कि उन्होंने पूरी इमानदारी और सच्चाई के साथ जो हुआ उसका खुलासा कर दिया। यही तो है आम आदमी पर्टी की विशेषता कि हम दूसरों का ही नहीं स्वयं का भी खुलासा करने से पीछे नहीं हटते। अब असल में हुआ क्या था इस बात का हम रहस्योद्घाटन अर्थात खुलासा यहाँ करने जा रहे हैं। ध्यानपूर्वक पढियेगा।
हुआ ऐसा कि सवेरे सवेरे हमारे कविराज दीर्घशंका अर्थात टट्टी करने संडास में घुसे। घर पर नए नए लगवाए वेस्टर्न कमोड पर कुछ समय अपना पिछवाडा टांगे कविवर को भान हुआ कि इन अंग्रेजों के 'कटोरे' में वो आनंद कहाँ जो विशुद्ध भारतीय पद्धति माने 'उखडू' बैठ कर हलके होने में आता है। विचार श्रृंखला के आगे बढ़ते हुए कुमार जी को वो दिन याद आये जब उन्होंने अमेठी में खुली हवा में झाड़ियों के झुरमुट के पीछे हल्का होने के आनंद का स्वाद चखा था। अब उन्होंने ठान लिया कि आज पुनः उस आनंद को चखेंगे। अपने निश्चय के पक्के, फौलादी जिगर के धनी क्रन्तिकारी कवी श्री श्री कुमार बकवास जी निकल पड़े दिल्ली में खुली हवा और नीले आकाश के नीचे मनपसंद झाड़ियों का झुरमुट ढूँढने।
अब क्या बताएं साथियों, एक तो दिल्ली में झुरमुटों की कमी, दुसरे जिस झुरमुट के पीछे झांको कोई प्रेमी युगल चोंच लडाता मिलता है, तीसरे ये कि यदि कोई झुरमुट खाली मिल भी जाये तो आस पास श्वान-झुण्ड अर्थात कुत्तों को देख अपने स्थानविशेष की सलामती के लिए वहां से निकल लेना ही श्रेयस्कर! इन सब पर ये कि कविवर तनिक 'चूज़ी' टाइप के हैं! ऐसी वैसी झड़ी इन्हें नहीं भाती। अतएव दिल्ली में झाड़ी ढूँढना असंभव प्रतीत हो रहा था। तभी कविवर की खोपड़िया में बिजली कौंधी। क्यों ना दिल्ली के बाहरी इलाके के किसी फलों के बगीचे में हल्का हुआ जय? कविवर ने झटपट आपिया पलटन को फुनिया कर इस क्रन्तिकारी विचार का खुलासा किया। विचार इतना क्रन्तिकारी था की युगपुरुष जी तथा संजय जी की बांछें खिल गयीं। तीनों यार अब निकल पड़े क्रांति की राह पर।
काफी खोजबीन के बाद क्रन्तिकारी-त्रय(trio) को सुन्दर फलों-फूलों से भरा एक हवादार बगीचा मिला। "यहाँ हल्का होने में जो आजादी की अनुभूति होगी!", यह सोच कर ही तीनों आजादी के दीवानों के पेट में जोश गुड़गुड़ाने लगा। तीनों ने अपने अपने पसंद की झाडी चुनी और हलके हो लिए। मानों दुनियां जीत ली थी तीनों ने! कविवर की तो खशी से आँखें छलक आयी थीं!
अब हल्का हो कर घर जाने का विचार आया तो बगीचे के फलों-सब्जियों पर ध्यान गया। सब ने सोचा कि घर के लिए 'चंदे' के रूप में कुछ ले चलते हैं। संजय जी ने कौली कौली ककड़ियां तोड़ ली और युगपुरुष जी ने कुछ अंगूर। संतरे लेना पाप होता क्योंकि ये तो कम्युनल रंग के होते हैं। आपिये तो पक्के सेक्युलर होते हैं। अतएव किसी हरी तरकारी को ढूँढना अत्यावश्यक था। तभी कविवर की दृष्टि पेड़ से लटक रहे कटहल पर पड़ी। कविवर ने बिना समय व्यर्थ किया उस कटहल को पेड़ से उतार लिया। इतने में वहां के माली को इनके क्रन्तिकारी कार्यों की भनक लग गई। वह लाठी ले कर बेचारे तीनों के पीछे दौड़ा।
हमारे कविवर अत्यंत हलके-पुलके एवं फुर्तीले होने के कारण सबसे आगे थे। उनके बाद युपुरुष और सबसे आखिर में भारी-भरकम संजय जी। तीव्र गति से दौड़ते हुए बगीचे के कम्पाउंड वाल के समीप पहुँच गए। माली दूर से अपना लट्ठ लिए दौड़ा चला आ रहा था। कविराज ने एक छलांग लगाई और दीवार के ऊपर जा बैठे। उन्होंने हाथ दे कर युगपुरुष जी को भी ऊपर खींच लिया। अब दोनों ने मिल कर संजय जी को ऊपर खींचने का प्रयत्न किया। माली अब अत्यंत निकट पहुँच चूका था। साथियों, यदि कोई और होता तो संजय जी को पीछे छोड़ कर उड़न छू हो लेता। परन्तु आपीए कभी साथ नहीं छोड़ते। कविराज और युगपुरुष जी ने 'आर या पार' वाला दम लगा कर संजय जी को खींचने का पूरा प्रयत्न किया परन्तु असफल रहे। उलट, संजय जी की भारी भरकम काया के कारण संतुलन खो कर स्वयं भी बगीचे के भीतर गिर पड़े। सबसे नीचे संजय जी, उनके ऊपर युगपुरुष जी और सबै के ऊपर कविराज और इनके सामने साक्षात् यमराज सामान माली। साले ने बिना कुछ पूछे ही पहले तो तीनों की लठ्ठ से सिंकाई कर दी। जब होश आया तो तीनों माली और उसके मित्रों से घिरे हुए थे। मामला तब संगीन हो उठा जब पता चला कि ये माली एंड गैंग पूरे संघी हैं। जान छोड़ने के लिए सालों ने एक शर्त रख दी - कि जो सब्जी जिसने तोड़ी है,यदि वह उसे अपने 'स्थानविशेष' मैं समाहित कर ले तो उसे छोड़ दिया जायेगा। युगपुरुष जी ने उन्हें याद दिलाया कि वो दिल्ली के CM रह चुके हैं, अतएव उनके साथ ऐसा दुर्व्यवहार नहीं किया जा सकता। इसपर माली ने पहले तो रावण की मानिंद अट्टहास लगाया और फिर बोला कि वो तो सदैव से ही CM रहा है अर्थात common man रहा है। और यह कह कर युगपुरुष जी और संजय जी को शर्त पूरी करने अथवा लठ्ठ से सेंकाई करवाने में से एक चुनने के लिए कहा। कुछ ही क्षणों पश्चात संजय जी और युगपुरुष जी लंगडाते हुए बाहर की ओर जाते दिखाई दिए। उन्होंने ककड़ी और अंगूर तोड़े थे, बेचारे कविवर ने कंटीला कटहल! सारी स्थिति पर दृष्टिपात करते ही कविवर का ह्रदय उनके कंठ में आ अटका। जिस बात का डर था वही हुआ... वह दैत्य सम संघी माली अब कविराज की ओर पलटा और बोला,"हाँ तो पतली कमरिया वाले, डंडे खाओगे या 'CM' बनना पसंद करोगे?"... और इस प्रकार हमारे कविराज बिना डंडे खाए घर पहुंचे।
साथियों, क्रांति के मार्ग में अनेक बलिदान देने पड़ते हैं। आम आदमी पार्टी ऐसे वीर बलिदानियों से भरी पड़ी है। कविराज श्री श्री कुमार बकवास जी अपने इसी बलिदान का बखान कर रहे थे। परन्तु इन भ्रष्ट मीडिया वालों ने अर्थ का अनर्थ कर डाला। हमें आशा है कि सत्य जानने के पश्चात आप सभी के मन में आम आदमी पार्टी के लिये आदर बढ़ जयेगा। हम सब आप के लिये ही तो लड़ रहे हैं। साथियों, क्रांति की मशाल जलाये रखना।
जय झाड़ू। जय अरविंद। चंदे मातरम।
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