योगेन्द्र यादव बोल्या...

मित्रों एवं सखियों,
आज हम योगीराज ब्रह्मज्ञानी सेक्युलर-शिरोमणि योगेन्द्र यादव जी के दिव्य जीवन के बारे में अद्भुत 'खुलासा' करने जा रहे हैं। योगेन्द्र जी, जिनकी श्वेत-श्याम (ब्लैक एंड वाइट) दाढ़ी के हर बाल से ज्ञान, सेकुलरता और 'आम आदमियत' टपकती है, का जीवन कुछ अविश्वस्नीय एवं चमत्कारी एवं 'क्रांतिकारी…बहुत ही क्रांतिकारी' घटनाओं से परिपूर्ण है। इन घटनाओं को सविस्तार पढ़िए -

योगिराज योगेन्द्र यादव जी जब हरयाणा के मेवात पहुंचे तो उन्हें उनके बाल्यकाल की भूली-बिसरी बातें स्मरण हो आयीं। उन्हें याद आया वो समय जब खतना करवाते समय उनके पिताजी ने उनका नाम 'सलीम' रखा था। केवल वो लोग जो उनके खतना-समारोह में उपस्थित थे वही उन्हें सलीम नाम से पुकारते हैं। मेवात में जैसे ही किसी ने 'सलीम' नाम से आवाज़ लगाइ, उन्हें अपने वो सुनहरे पल स्मरण हो आये।

तनिक आगे जाने पर उन्होंने देखा कि एक मोची अपनी दुकान पर जूते-चप्पलों की मरम्मत कर रहा था। योगेन्द्र जी की अंखियाँ भर आयीं और वो उस मोची के निकट जा कर बोले कि बचपन में पिताजी ऐसे ही फटे हुए पुराने चप्पलों से योगेन्द्र जी कि 'मरम्मत' किया करते थे और इसी कारणवश उनका नाम 'चप्पल-खोर' रखा गया था।  केवल वही लोग, जिनकी चप्पल-जूते उठा कर पिताजी योगेन्द्र जी का स्थानविशेष सेंका करते थे, उन्हें इस नाम से पुकारते हैं। आज भी 'चप्पल-खोर' के बताशों पर चप्पलों के निशान हैं। विश्वास न हो तो स्वयं जांच लें।
अगली गली के छोर पर योगिराज योगेन्द्र यादव जी की दिव्य दृष्टि सिख समुदाय के कुछ बच्चों पर पड़ी जो एक गिरजाघर/चर्च के प्रांगण में गुल्ली डंडा खेल रहे थे। बच्चों के पास जा कर प्रभु योगेन्द्र जी ने कहा कि बचपन में उन्हें खाने-पीने का बड़ा शौक था।  खा-खा कर वो पूरे गोल-मटोल हो गए थे। फिर पिताजी ने उनका वज़न घटाने के लिए उन्हें खूब jogging करवाई और तभी से उनका नाम 'जॉगिंग-जोगिन्दर' पड़ गया। केवल वो लोग जिनके ढाबे पर जा कर योगेन्द्र जी सब चट कर जाया करते थे, उन्हें 'जॉगिंग-जोगिन्दर' के नाम से पुकारते हैं। बाद में वजन घटाने के लिए जब उन्हें पिताजी ने बिन सीट की साइकिल पर चढ़ा दिया , तो उनका नाम 'माइकल' पड़ गया था। केवल वो लोग जिन्होंने इस साइकिल कि वजह से घायल हुई उनकी 'तशरीफ़' का उपचार किया था, उन्हें 'साइकिल वाले माइकल' के नाम से पुकारते हैं। 
परमज्ञानी सेक्युलर-शिरोमणि योगेन्द्र यादव जी की ये चमत्कारिक बातें सुन कर चारों ओर उनका जयघोष होने लगा।  'आपियों' ने उन्हें अपने कंधे पर ही उठा लिया। इतने में कुछ दूर से जाते जवान हरयाणवी लौंडों पर प्रभु योगेन्द्र जी की कृपादृष्टि पड़ी। लौंडे यो यो हनी सिंह के गीत गुनगुनाते हुए मस्ती में जा रहे थे। परम कृपालु योगेन्द्र जी को भी उनके जवानी के दिन याद हो आये, जब उनकी दाढ़ी पूर्णतया काली थी। वे इन लौंडों को भी अपनी आम आदमियत दिखाने की नियत से उनके पास गए और अपना परिचय देते हुए बोले -
"आदमी हूँ आम, नहीं कोई famous singer...
पिताजी ने मेरे कई नाम रखे, but call me यो यो योगिंदर"
योगेन्द्र जी के इस अद्भुत कवित्त पर मंत्रमुग्ध हो सारे आपीए फिर एक बार उनका जयघोष करने लगे।
परन्तु आजकल के लौंडे! रत्तीभर तमीज नहीं है सालों को। लौंडों ने जवाब दिया -
"बावला समझै सै के ताऊ म्हन्ने....तड़के तै कोय ना मिल्या के तन्ने ?"
साले, अवश्य ही भाजपाई या संघी होंगे, तभी प्रभु योगेन्द्र जी की दिव्य वाणी का उनपर कोई प्रभाव नहीं हुआ।

चाहे ये संघी-भाजपाई कुछ भी कहें, चाहे उनपर श्री श्री योगेन्द्र यादव जी की दिव्य वाणी का कोई असर न हुआ हो , परन्तु हमारे मन-मस्तिष्क में उनकी ही सेक्युलर मूरत बसी है। 

जय योगेन्द्र/सलीम/चप्पलखोर/जोगिन्दर/माइकल/यो-यो-योगिंदर 
जय अरविन्द, जय झाड़ू , चंदे मातरम 


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