"दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी जीती तो तुम कहाँ भागोगे?" ये रहा हमारा उत्तर

कृपया ध्यान दें : प्रिय पाठक गण, यह कोई छिपी बात नहीं है कि हम भाजपा समर्थक रहे हैं और यह हमारे लेखन से स्पष्ट झलकता भी है। ध्यान रहे, समर्थक; अंधभक्त नहीं। चुनाव पूर्व हमारी टिप्पणियों पर कई लोग प्रश्न उठाते रहे कि यदि चुनाव में आम आदमी पार्टी जीत गयी तो हम अपना बोरिया-बिस्तर बांध कर गुल तो नहीं हो जायेंगे। तब हँस दिया करते थे, आज भी हँस ही रहे हैं। उस प्रश्न का उत्तर कुछ इस प्रकार दे रहे हैं, आशा है आपको पसंद आएगा। 
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इंटर-कॉलेज मैच के पहले कुछ दूसरी कैंपस के लौंडे कभी कभार अपने अड्डे पर आ कर अपने लौंडों को हड़काने के प्रयत्न करते थे। पूछते थे कि कहीं हार गए तो अड्डा बंद कर के पुस्तकों में मुंह तो ना छिपा लोगे ? तब हँस के टाल देते थे, उत्तर जिह्वा के छोर पर रोक लेते थे। उत्तर शब्दों में क्या देना ? आज भी पूरी ठसक के साथ अपने अड्डे पर चाय की चुस्कियों के साथ ठहाके लगा रहे हैं, क्यों? क्योंकि हम जानते हैं, "सितारों के आगे ये जहाँ और भी हैं, अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं"… 

इतिहास साक्षी है, अपने जैसे देसी लौंडे 'गढ़े नहीं, कढ़े जाते' हैं.…'गढ़े' सिक्के जाते हैं टकसाल में; दूध को धीमी आँच में औंटाया जाता है, यूँ खोआ 'कढ़ा' जाता है। निरंतर विजयश्री तो छोड़िये, शुरू से ही एक के बाद एक हार का सामना किया, पर डंटे रहे। कई अथक प्रयासों के पश्चात विजयश्री हमपर मुस्काई। हमारी हार की दही में जीत की मिश्री रही है... और दोनों ही शिरोधार्य हैं। 

दूसरी ओर दूसरी कैंपस के लौंडे नए तो हैं ही, इनका कॉलेज भी नया है। नया लहू, नया उत्साह ! आते साथ जीत का स्वाद चखा, पर अनुभवहीन होने के कारण उसकी महत्ता ना जान पाये, बड़ी ट्रॉफी की ओर लपके। "आधा छोड़ पूरे को धाए; आधा मिला ना पूरा पाये" वाली बात साकार हो गयी। फिर लौट कर अपने इलाके में भिड़ पड़े। अब फिर जीते हैं। अच्छा है, खूब नाचो… पर जीत पचा तो लोगे ना? नहीं मतलब, हाजमा ठीक रखना। ;)

अपना क्या है… कल फिर सवेरे अखाड़े जायेंगे तो गुरूजी अगले दंगल की तैयारी में झोंक देंगे। वही ८-१० किलोमीटर की दौड़, २०० दंड-बैठक, १५० नमस्कार… पूरा तेल निकाल कर रख देंगे। उफ़ करेंगे तो पिछवाड़े छड़ी पड़ जाएगी। पर इसी सब की आदत है हमें। हम गढ़े नहीं, कढ़े  गए हैं। अबकी पटखनी खाए हैं तो दोगुने उत्साह से 'धोबी-पछाड़' के अभ्यास में भिड़ेंगे। फिर संध्या मंदिर में आरती के बाद अड्डे पर बकैती के लिए जुटेंगे। ड्यूड नहीं हम देसी छोरे हैं , विजयश्री पर नंगे नहीं नाचते और पराजय पर कोप भवन में नहीं घुस बैठते। क्या समझे ? ;)

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दिल्ली विधान सभा चुनाव के नतीजों पर जो सोचते हैं कि भाजपा समर्थक निराश हैं, उन्हें पुनः सोचना चाहिए। ये वह पार्टी है जो साल-दो साल के धरने-नारों से सत्ता में नहीं आई, अपितु अथक प्रयासों के बाद जनादेश पाई है। जीत से अधिक इसे पराजय का अनुभव है। अतएव धीर धरें। अभी "दिल्ली दूर अस्त" ;)
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2 comments:

  1. खेल अभी पूरा नहीं हुआ , क्यूंकि हम अभी जीते नहीं है ,
    फिर आएंगे , दुगुनी ताकत के साथ ,
    तब तक आते रहेंगे , जब तक तुमको जड़ से उखाड़ के न फेंक दें

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  2. निराश तो हम भी नही है

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