सेक्युलर इतिहास में अफज़ल खान वध कैसा लिखा जायेगा ?

मित्रों और सहेलियों, आजकल देखने में आ रहा है कि ये भगवा आतंकवादी संघी-भाजपाई भारत के सेक्युलर इतिहास को पुनः बदलना चाहते हैं। आप पूछेंगे 'पुनः' क्यों? पुनः इसलिए क्योंकि पहले एक बार अथक प्रयासों द्वारा महान सेक्युलर कोंग्रेसी तथा वामपंथियों ने इस राष्ट्र के कम्युनल इतिहास को सेक्युलर बनाया था; अब ये मंदबुद्धि संघी-भाजपाई इस किये-कराए पर पानी फेरने पर तुले हुए हैं। जैसा कि कांग्रेस की महान क्रन्तिकारी कार्यकर्ता अमीबा हसीन जी ने कहा था, "सिंपल सी बात है, कोई राकेट साइंस नहीं"… जी हाँ, सीधी-सरल-सिंपल सी बात है कि यदि देश के वास्तविक इतिहास को लोगों तक पहुँचने दिया गया तो देश के विभिन्न अल्पसंख्यक समुदायों पर भय तथा संकट की स्थिति आ सकती है। पर चरित्र से विवश ये कम्युनल संघी गड़े मुर्दे उखाड़ने में लगे हुए हैं। स्वयं तो अपने शवों को ये भगवा आतंकवादी अग्नि में स्वाहा कर देते हैं ताकि कोई साक्ष्य-प्रमाण पीछे ना छूट जाये… और दूसरों के गड़े मुर्दे उखाड़ते रहते हैं। इसी से स्पष्ट होता है कि सारे संघी कम्युनल हैं; यदि सेक्युलर होते तो ये अपने यहाँ के शवों को गाड़ते, ताकि दूसरों को भी इनके गड़े मुर्दे उखाड़ने का अवसर मिलता। ये तो चीटिंग हो गई! नॉट फेयर!


अब मूल विषय पर लौटता हूँ। तो साथियों, आप सभी ने इस देश के इतिहास को पूर्णतया सेक्युलर रंग में रंगे देखने का एक स्वर्णिम अवसर खो दिया है। कैसे? वह ऐसे कि २०१४ के लोकसभा चुनाव पूर्व राजमाता सोनिया जी तथा उनके समस्त अति विद्वान तथा भयंकर सेक्युलर कोंग्रेसी मंत्रीगण वामपंथियों के संग मिल कर इस देश के इतिहास को पूर्णतया सेक्युलर बनाने की अति महत्त्वाकांक्षी परियोजना में संलग्न थे; जो काम चाचा नेहरू तथा अन्य अधूरा छोड़ गए थे, उसे पूरा जो करना था! इस परियोजना के माध्यम से इतिहास की प्रत्येक घटना का केवल सेक्युलर बखान ही मान्य होता। अब आप सोच रहे होंगे कि कैसा सेक्युलर बखान, तो आपको उदाहरणार्थ छत्रपति शिवजी महाराज तथा अफज़ल खान के मैत्री भेंट की कथा का सेक्युलर वर्णन बता रहे हैं, अपने सेक्युलर चक्षु खुले रखकर ध्यानपूर्वक पढियेगा।

हाँ तो साथियों, बात तब की है जब छत्रपति शिवाजी ने अपनी हरकतों से बीजापुर की सेक्युलर आदिलशाही की नाक में दम किया हुआ था। तंग आ कर इस महान सेक्युलर सल्तनत ने अति ज्ञानी एवं महान राजनीतिज्ञ तथा गाँधीवादी अफज़ल खान को शिवाजी को समझाने-बुझाने तथा प्रेम और भाईचारे का सन्देश देने के लिए भेजा। अफज़ल खान का जहाँ-जहाँ शिवाजी की सेना से सामना हुआ, वहाँ-वहाँ वे अहिंसापूर्वक सत्याग्रह और धरने दे कर शिवाजी के सैनिकों का ह्रदय परिवर्तन करने लगे। यह अफज़ल खान के अहिंसक प्रदर्शनों का ही प्रभाव था कि शिवाजी को पीछे हट कर प्रतापगढ़ के किले में शरण लेनी पड़ी। अफज़ल खान ने अपने धैर्य का प्रमाण देते हुए कई दिनों तक प्रतापगढ़ किले को घेर कर धरना दिया (जिसे संघी इतिहासकारों ने 'घेराबंदी' लिख डाला!)… कई दिनों तक अफज़ल खान धरने देते तथा "इंसान का इंसान से हो भाईचारा… यही संकल्प हमारा" जैसे अहिंसावादी क्रांतिकारी गीत गाते रहे। अंत में जब अफज़ल खान को पूर्णरूपेण विश्वास हो गया कि अब शिवाजी का हृदयपरिवर्तन हो चुका होगा, तब उन्होंने शिवाजी को मैत्री-भेंट के लिए न्योता भिजवाया। अफज़ल खान के दिव्य व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर शिवाजी भी अब सेक्युलर हो चुके थे, अतएव उन्होंने अफज़ल खान का न्योता स्वीकार कर लिया।

जब शिवाजी अपने दो अंगरक्षकों (जीवा महाला तथा संभाजी कावजी) के संग अफज़ल खान से मिलने पहुंचे तब अफज़ल खान ने अपने अंगरक्षक सैयद बन्दा समेत उनका आदर सत्कार किया तथा अपने शिविर में ले गए। भीतर दोनों में खूब हँसी-ठिठोली हुई तथा मस्ती यहाँ तक पहुँच गई कि शिवाजी ने अफज़ल खान को गुदगुदी तक लगा डाली! इतिहास में प्रमाण तो यहाँ तक मिलते हैं कि इस छोटी सी मैत्री-भेंट में ही अफज़ल खान और छत्रपति शिवाजी महाराज एक दूसरे के अत्यंत घनिष्ट मित्र बन गए थे... इसी के फलस्वरूप जब शिवाजी जाने लगे तो उन्होंने अफज़ल खान को मैत्री-आलिंगन दिया। और इस प्रकार गाँधी जी के बतलाये हुए सत्य-अहिंसा के मार्ग पर चल कर अफज़ल खान ने शिवाजी का ह्रदय परिवर्तन कर उनसे शांति स्थापित कर ली थी। परन्तु कदाचित होनी को कुछ और ही मान्य था... जैसे ही शिवाजी महाराज अपने अंगरक्षकों सहित अफज़ल खान के शिविर से बाहर निकले, अफज़ल खान के सैनिकों के भेष में एक संघी ने "संघे शक्ति कलियुगे" बोलते हुए अफज़ल खान पर आक्रमण कर उसकी हत्या कर दी। दूसरी ओर बाहर खड़े सैनिकों के भेष में बाकी के संघियों ने यह बात पसार दी कि शिवाजी ने अफज़ल खान का वध कर दिया। और इस प्रकार एक बार पुनः कम्युनल संघी अपने षडयंत्र में सफल हुए। कालांतर में संघी लेखकों ने अफज़ल खान तथा छत्रपति शिवाजी महाराज के मैत्री-आलिंगन की घटना को बदल कर चहुँओर यह असत्य बिखेर दिया कि इसी समय अफज़ल खान ने शिवाजी के प्राण हरने का प्रयत्न करते हुए उनपर खंजर से वार किया था और पप्रत्युत्तर में शिवाजी ने बाघनखों से अफज़ल खान का वध कर दिया। इस प्रकार संघियों ने इस देश के सेक्युलर इतिहास को अपने षड्यंत्रों द्वारा तोडा-मरोड़ा है। इतना ही नहीं अफज़ल खान एक अत्यंत ही शांतिप्रिय तथा अहिंसावादी व्यक्ति थे तथा शिवाजी और उनके बीच घनिष्ट मैत्री सम्बन्ध थे।

तो मित्रों देखा आप ने कि आप ने कितनी बड़ी संधि हाथ से निकल जाने दी! नहीं मतलब, यदि पुनः आप महान कांग्रेस को इस राष्ट्र की बागडोर सौंपते तो इस बार तो वे इतिहास बदल कर ही रख देते… लिटरली !
Share on Google Plus
    Blogger Comment
    Facebook Comment

2 comments:

  1. सुन्दर अति सुन्दर कटाक्ष रचना।

    ReplyDelete
  2. आंख खोलनेवाला कटाक्ष

    ReplyDelete