केजरीवाल जी कि लिस्ट की महिमा

अभी कुछ दिन ही हुए थे कि मोदी का समर्थन करने वाले एक 'संघी' लेखक चेतन भगत ने परम प्रतापी - सेक्युलरता की मूरत - ब्रह्ममज्ञानी - युगपुरुष श्री  अरविन्द केजरीवाल जी कि तुलना राखी सावंत से करने का पाप किया था।  इस गर्धभ-मुख को क्या पता हमारे युगपुरुष कि लीलाओं के बारे में ! माना कि राखी सावंत ऐसी बाला हैं जो समाचार चैनल पर कैसे छाये रहना चाहिए इस कला में निपुण हैं, परन्तु हमारे युगपुरुष कि महिमा ही अलग है।  ५०० करोड़ खर्च कर के सोनिया माता ने राजदुलारे राहुल भैय्या को भेंटवार्ता, अर्थात  इंटरव्यू में भेज कर उनका नाम रोशन किया था। राहुल जी ने आखिर अपनी अति तीक्ष्ण बुद्धि का परिचय देते हुए देश चलाने के अतिगूढ़ रहस्यों को केवल चार बिंदुओं में जो समेट दिया था - सत्ता का विकेंद्रीकरण, सूचना का अधिकार (आर टी आई), महिला सशक्तिकरण और युवाओं को राजनीती में स्थान देना।  चमत्कार से कम थोड़े ही था ये! दो दिनों तक हर अख़बार, हर समाचार चैनल पर राहुल जी का ही महिमा मंडन होता रहा। राहुल जी के चमत्कार के पहले ए के सर ही छाये हुए थे समाचारों में, और अब मीडिया कि लाइम-लाइट युगपुरुष से हट कर राहुल जी पर थी।  हमारे युगपुरुष को कैमरे से बड़ा प्रेम है।  उनके तो पाखाने तक में कैमरा लगा हुआ है! फिर उनसे मीडिया द्वारा उनकी ये उपेक्षा कैसे सहन होती? बस क्या था, रात भर में एक ऐसी योजना बनाई कि सोनिया माता के ५०० करोड़ को टक्कर दे डाली।  ऐसा क्या किया युगपुरुष ने? जानने के लिए पढ़ते रहिये।

युगपुरुष की तीक्ष्णातितीक्ष्ण (तीक्ष्ण-अति तीक्ष्ण) बुद्धि का कमाल देखिये कि अगले ही दिन उन्होंने जगराते का आयोजन कर डाला। जी हाँ, आपने ठीक सुना, दिन में जगराता - है ना कमाल? ये तो बस एक छोटा सा उदाहरण है हमारे युगपुरुष कि महिमा का।  ना ना, ये मत सोचियेगा कि ये किसी देवी- देवता का जगराता था। अगर ए के सर ऐसा करते तो उनकी 'सेक्युलर' इमेज को बट्टा न लग जाता? भैय्या, 'साचा दरबार' तो युगपुरुष ने आम आदमी पार्टी (आ आ पा ) के दरबार को कहा है, आखिर यहाँ सब सच्चाई और ईमानदारी के पुतले जो हैं! एक बार दरबार शुरू हुआ, फिर क्या था, युगपुरुष जी ने निकाली अपनी आम आदमी वाली पतलून में से एक लम्बी सी सूची/फेहरिस्त/लिस्ट और चुन-चुन कर एक एक बेईमान का नाम पढ़ा।  चमत्कार तो देखिये, जब केजरीवाल जी नाम पढ़ रहे थे तो ठीक जैसे माता के जगराते में चंदा दान करने वालों के नाम माइक पर कहे जाते हैं, उसी प्रकार का माहौल पैदा हो गया -
"कोयला (घोटाले) वाले श्री फलां फलां जी कि ओर से इक्कीस रूपया
टांय-टांय वाले श्री फलां-फलां जी कि ओर से इंक्यावन रुपिया …"

दरबार में उपस्थित जनता भी एक सुर में हर नाम के बाद कुछ नारा लगा देती थी, लगता था जैसे 'जय हो' कह रही हो।  पूरा माहौल केजरी-मय हो चुका था।  फिर क्या था, पुनः मीडिया वाले जैसे किसी कचरे के ढेर के ऊपर मक्खियां भिनभिनाती हैं, ठीक वैसे ही अपने अपने कैमरे ले कर घूमने लगे।  दिन भर कि देरी भी न लगी हमारे युग पुरुष को फिर से अख़बारों और समाचार चैनलों में फिर से छाने में।  इसे कहते हैं असली चमत्कार!
"ना हींग लगे न फिटकिरी, रंग भी चोखा होये!"  
- ५०० करोड़ तो दूर, एक दमड़ी खर्च न हुआ और ए के सर कि महिमा फिर से दसों दिशाओं में गूंजने लगी!
जय ए के सर, जय झाड़ू, जय टोपी। 
॥ चंदे-मातरम ॥  
  
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