बुद्धिजीवियों की बातों में न आयें, होली कुछ यूँ मनायें

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अभी कुछ ही दिन पहले महाशिवरात्रि का पर्व था। जहाँ श्रद्धालु अपने प्रिय भोलेनाथ को श्वेत पुष्प, धतुरा और दूध चढ़ा रहे थे, वहीँ दूसरी ओर लोग दूध की बर्बादी की दुहाई देते न थक रहे थे। ये नौटंकी थमी नहीं थी कि अब आई है होली की बारी और सारे बुद्धिजीवी एक स्वर में 'होली में पानी की बर्बादी' की दुहाई देने जुट गए हैं। इन सारे तथाकथित बुद्धिजीवियों से मैं पूछना चाहूँगा कि इस जीवन में जहाँ इतनी कठिनाइयां हैं, जहाँ हर मोड़ पर कोई दुःख-तकलीफ जबड़ा फाड़े खड़ा है, वहां सामान्य-जन के खुल के हंसने के मौके क्यों छीनने में लगे हो भाई? आप बात तो ऐसे कर रहे हो की अगर हम होली और दिवाली मनाना छोड़ दें तो भारत में सब को शुद्ध पेय-जल और शुद्ध वायु मुहैया हो जाएगी। आपको होली में पानी की बर्बादी की इतनी ही चिंता है तो जल संचय के कुछ नुस्खे बता रहा हूँ। स्वयं इनका पालन करें तथा अपने परिवारजनों से भी करवाएं। और जो न कर पाएं तो आयें,हमारे साथ होली का आनंद उठाएं :

१- प्रातः -क्रिया में पृष्ठ-प्रच्छालन (पिछवाडा धोने) हेतु जल की जगह 'टिशु पेपर' का प्रयोग करें। जल-संचय के अलावा इसका अनुसरण करने से आप अंग्रेजों जैसे 'सभ्य' बन जायेंगे।

२-स्नान हेतु फव्वारे (शावर) का प्रयोग न कर, केवल बाल्टी के जल का प्रयोग करें।अपना स्नान एक बाल्टी पानी में निपटाने का प्रयास करें।एक बाल्टी में स्नान न हो पाए तो सप्ताह में एक-दो बार से अधिक न नहाएं।शरीर की दुर्गन्ध भगाने हेतु axe डियो तो है ही!

३- अपने वाहनों को धोने हेतु बाल्टी का प्रयोग करिए। इस क्रिया को भी एक बाल्टी में निपटाएं।

४- जिस पानी से कपडे धोये हों, उसको फेंकने की जगह उसे घर में पोछा लगाने में प्रयोग में लायें।

निम्नलिखित नुस्खों का प्रयोग मात्र एक सप्ताह में इतना जल संचित कर देगा कि आप अगले एक सप्ताह तक होली खेल पाएंगे। अब तो मुस्कुरा लीजिये और आइये फागुन के गुण गाइये।

NB: और हाँ, तेल लगा कर ही होली खेलने आइयेगा, नहीं तो रंग आसानी से नहीं जायेगा। :)
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