स्मृति ईरानी की पढाई ने ये कैसी क़यामत लाई !

"पोथी पढ़-पढ़ जग मुआं पंडित भया ना कोए 
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय " 
संत कबीर के इस दोहे का कदाचित अब कोई औचित्य नहीं रह गया। वो ठहरे पुराने समय के एक जुलाहे। आज के पढ़े-लिखे बुद्धिजीवियों से उनकी तुलना सूरज को दिया दिखाने सामान होगी, नहीं? सर्वविदित है कि कांग्रेस की यूपीए सरकार ने अपने अति शिक्षित तथा प्रकांड (eminent/colossal/profound) अर्थशास्त्री श्री मनमोहन सिंह जी के नेतृत्व में कितनी प्रगति की थी! उनके सशक्त मार्गदर्शन में भारत की अर्थव्यवस्था ने नई ऊँचाइयाँ पाई थीं। (तभी तो महंगाई आसमान छू रही थी!) साथ ही राजमाता सोनिया जी और राजकुमार पप्पू बाबा जी दोनों ही अति विद्वान तथा उच्चशिक्षित हैं, तभी तो सारे कांग्रेसी उनके समक्ष नतमस्तक रहते हैं। और 'दामाद' जी के बारे में तो बस पूछिए ही मत ! अब ऐसे चमत्कारी नेतृत्व वाली पार्टी के किसी चाटुकार … अररर मेरा मतलब है कर्तव्यनिष्ठ सदस्य ने मोदी सरकार में नई मंत्री बनी स्मृति ईरानी के शिक्षण के बारे में पूछ लिया तो क्या अनुचित किया? वैसे एक संघी-भाजपाई चायवाले से यही अपेक्षा थी कि एक १२वीं पास को मंत्री बनाये। नहीं?
अब जब कांग्रेसीयों ने किसी संघी-भाजपाई पर हमला किया तो आपिये कैसे पीछे रहते? हमारे युगपुरुष तो सबसे अधिक विद्वान हैं , फिर उनके अनुयाई क्यों ना इस प्रश्न पर हाय-तौबा मचाएं? ये तो उनका अधिकार है। सच पूछिए तो, 'आप' से जुड़ते ही हर विषय पर, चाहे उसमें आप का ज्ञान-अनुभव-जानकारी कितनी ही निम्न क्यों ना हो, आप को उसके बारे में प्रश्न करने, नारे लगाने तथा धरने देने का अधिकार है, क्योंकि सारे आपिये अभ्रष्ट हैं। आपने देखा नहीं था कि भारतीय तकनीकी संस्थान अथवा आई आई टी में पढ़े-लिखे हमारे युगपुरुष जी ने केवल ४९ दिनों में कैसे चमत्कार कर दिखाए, और आज दिन तक किये ही जा रहे हैं !

अब प्रश्न कोई भी करे और उसपर चित्कार कोई करे ना करे, परन्तु इस चायवाले की सरकार को उत्तर तो देना ही होगा कि एक १२वीं पास को उन्होंने मंत्री बनाया तो बनाया कैसे; वह भी मानव संसाधन विकास मंत्री! क्या इनको पता नहीं कि इस देश पर केवल उच्च-शिक्षित वर्ग ही राज कर सकता है ? क्या इनको ये नहीं पता कि १२वीं कक्षा उत्तीर्ण कर लेना भी अनपढ़ रहने के सामान ही है? क्या हुआ अगर स्मृति ईरानी का परिवार आर्थिक तंगी में था, क्या हुआ कि उन्होंने पैसे कमाने के लिए मैक्डॉनल्ड्स में काम किया था। अगर कोई महिला अपने बलबूते पर ऐसी आर्थिक तंगी से स्वयं को उबार कर टीवी पर काम करे और नाम कमा ले तो कौन सी बड़ी बात हो गई? किसी राजनैतिक पार्टी से जुड़ कर कठिन परिश्रम के बलबूते  स्वयं को साबित करना कोई कठिन काम नहीं है - कठिन परिश्रम देखना है तो कांग्रेस्सियों की प्रगाढ़ चाटुकारिता और आपियों के क्रन्तिकारी धरने देखिये! अब ये संघी-भाजपाई स्मृति ईरानी के सुदृढ़ व्यक्तित्व एवं वाक्पटुता (eloquence) की दुहाई देंगे।  अरे भाई, मनमोहन जी को देखिये, इन दोनों गुणों के आभाव में भी कैसी चमत्कारी सरकार चलाई उन्होंने!

इस देश को धरातल से उठ कर स्वयं अपने बलबूते उभरे १२वीं उत्तीर्ण, जो देश के आर्थिक रूप से दुर्बल छात्र और नौकरी ढूंढ रहे युवा वर्ग की कठिनाइयों को समझते हों ऐसे मंत्रियों की कतई आवश्यकता नहीं है। हमें आवश्यकता है उन लोगों की जो जो उच्चशिक्षा की डिग्रियाँ रखते हों, फिर चाहे वो कुछ ही दिनों में पीठ दिखा कर भाग ही क्यों न खड़े हों या अपने इस ज्ञान के भण्डार का उपयोग देश को लूटने के लिए ही क्यों न करे। लुटना ही है तो पढ़े-लिखे विद्वानों से लुटिये, अनपढ़ों से अपना कल्याण कराने में घण्टा कोई भला है!

इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढने के प्रयत्नों में हम शीघ्र ही अपने अंग्रेजी ब्लॉग पर आलेख प्रकाशित करेंगे।  कृपया कल अवश्य यहाँ पढियेगा : www.TheGhantaaBlog.blogspot.in
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