मित्रों एवं सहेलियों,
आज हम बखान करने जा रहे हैं बुद्धिजीवियों में अति-बुद्धिजीवी तथा सेक्युलरों में अति सेक्युलर - सागरिका घोष का। ये महिला इतनी सेक्युलर है की इन्हें 'देवी' सम्बोधन पर भी आपत्ति है, तथा इतनी आधुनिक/मॉडर्न हैं कि इन्हें महिलाओं/कन्याओं को 'माता/बहन' कह कर सम्बोधित करने वालों से परहेज है। इनकी सेक्युलर सोच इतनी महान है कि ये मंडी में सब्जी खरीदते समय लाल-नारंगी टमाटर नहीं, अपितु हरे टमाटर खरीदती हैं… गाजरों को तो ये हाथ भी नहीं लगातीं।
"भेद सागरिका घोष की त्वचा का मनोहारी
ताज़ी-ताज़ी हरी सब्जी-तरकारी!"
परन्तु आज ही हम ने इनकी महान सेक्युलरता का बखान करने की क्यों सोची? प्रभो! इसके पीछे इनका वो ट्वीट है जो की इन्होने अपने हरे रंग के नेल-पॉलिश पुती उँगलियों से टाइप की थी। तनिक आप भी अवलोकन कीजिये -
मोदी अगर काशी विश्वनाथ के दर्शन करें, गंगा आरती करें परन्तु किसी मस्जिद-मज़ार पर मत्था ना टेकें? ये तो घोर निन्दा का विषय है ! ये तो राष्ट्र के अल्पसंख्यकों का अपमान है! ये सरासर भगवा आतंकवाद है!
मेरा कोटि-कोटि नमन ऐसी महान शौच.…अररर मेरा मतलब सोच को जो हर 'भगवा आतंकवादी' का रंग उड़ने के लिए प्रतिबद्ध है। मैं तो कहता हूँ कि देश की सारी सेक्युलर ताकतें एकजुट हो कर सागरिका जी जैसी महान विभूतियों का अनुसरण करते हुए ऐसे नियम-कानून बनाने चाहिए जिसमें यह अनिवार्य कर दिया जाये कि यदि कोई भी हिन्दू अगर मंदिर में दर्शन के लिए जाये अथवा पूजा पाठ करे तो उसे अपनी सेकुलरता साबित करने के लिए चर्च और मस्जिद जाना होगा, अन्यथा वह 'भगवा आतंकवादी' कहलायेगा। यदि कोई सर मुंडवाए तो उसे खतना भी करवाना होगा, यदि कोई तिलक लगाये तो उसे टोपी भी पहननी होगी। आदरपूर्वक हर नाम से पहले 'श्री' की जगह 'मियां' लगन अनिवार्य हो। 'जय श्री राम' का नर तो कतई बैन कर दिया जाना चाहिए। ऐसा ना करने वाले सांप्रदायिक मानसिकता वाले लोगों को, जैसा महान भविष्यवक्ता फ़ाहरुक अब्दुल्ला जी ने कहा, समुद्र में जल-समाधी ले लेनी चाहिए।
किन्तु-परन्तु अब किस किस को कोई समझाए की जीवन में सुख-समृद्धि, अच्छी शिक्षा और विकास ही सबकुछ नहीं होते। और ये सब ना भी हों तो जीवन अगर सेक्युलर बना लिया जाये तो जीवन सफल है ! बेचारी सागरिका घोष और अन्य सेक्युलर बुद्धिजीवी वर्ग आज छाती पीट-पीट कर रो रहा है कि मोदी जैसे भगवा आतंकवादी को देश ने ऐसा प्रचण्ड बहुमत दे कर जिताया है। फिर भी उन्हें आशा है कि मोदी अब अपनी घृणित भगवा मानसिकता को छोड़ कर हरियाली को अपना लेंगे। परन्तु होनी को यादचित कुछ और ही मंज़ूर है , तभी तो आज इस देश के अल्पसंख्यक युवा भी सेक्युलर ताकतों का साथ छोड़ने लगे हैं! उन्हें सैक्युलरिज़म से अधिक बिजली-पानी की चिंता हो रही है ! कहते हैं 'तेल लेने गया सेकुलरिज्म'! यकीन ना आये तो स्वयं देख लीजिये -
ये कोई तरीका हुआ भला? उफ्फ! अब क्या होगा इस 'मुल्क' का?
आज हम बखान करने जा रहे हैं बुद्धिजीवियों में अति-बुद्धिजीवी तथा सेक्युलरों में अति सेक्युलर - सागरिका घोष का। ये महिला इतनी सेक्युलर है की इन्हें 'देवी' सम्बोधन पर भी आपत्ति है, तथा इतनी आधुनिक/मॉडर्न हैं कि इन्हें महिलाओं/कन्याओं को 'माता/बहन' कह कर सम्बोधित करने वालों से परहेज है। इनकी सेक्युलर सोच इतनी महान है कि ये मंडी में सब्जी खरीदते समय लाल-नारंगी टमाटर नहीं, अपितु हरे टमाटर खरीदती हैं… गाजरों को तो ये हाथ भी नहीं लगातीं।
"भेद सागरिका घोष की त्वचा का मनोहारी
ताज़ी-ताज़ी हरी सब्जी-तरकारी!"
परन्तु आज ही हम ने इनकी महान सेक्युलरता का बखान करने की क्यों सोची? प्रभो! इसके पीछे इनका वो ट्वीट है जो की इन्होने अपने हरे रंग के नेल-पॉलिश पुती उँगलियों से टाइप की थी। तनिक आप भी अवलोकन कीजिये -
मोदी अगर काशी विश्वनाथ के दर्शन करें, गंगा आरती करें परन्तु किसी मस्जिद-मज़ार पर मत्था ना टेकें? ये तो घोर निन्दा का विषय है ! ये तो राष्ट्र के अल्पसंख्यकों का अपमान है! ये सरासर भगवा आतंकवाद है!

किन्तु-परन्तु अब किस किस को कोई समझाए की जीवन में सुख-समृद्धि, अच्छी शिक्षा और विकास ही सबकुछ नहीं होते। और ये सब ना भी हों तो जीवन अगर सेक्युलर बना लिया जाये तो जीवन सफल है ! बेचारी सागरिका घोष और अन्य सेक्युलर बुद्धिजीवी वर्ग आज छाती पीट-पीट कर रो रहा है कि मोदी जैसे भगवा आतंकवादी को देश ने ऐसा प्रचण्ड बहुमत दे कर जिताया है। फिर भी उन्हें आशा है कि मोदी अब अपनी घृणित भगवा मानसिकता को छोड़ कर हरियाली को अपना लेंगे। परन्तु होनी को यादचित कुछ और ही मंज़ूर है , तभी तो आज इस देश के अल्पसंख्यक युवा भी सेक्युलर ताकतों का साथ छोड़ने लगे हैं! उन्हें सैक्युलरिज़म से अधिक बिजली-पानी की चिंता हो रही है ! कहते हैं 'तेल लेने गया सेकुलरिज्म'! यकीन ना आये तो स्वयं देख लीजिये -
ये कोई तरीका हुआ भला? उफ्फ! अब क्या होगा इस 'मुल्क' का?
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