रोक सको तो रोक लो मुझको मैं तो होली मनाऊंगा।

रोज़ रोज़ की हो गई चिक-चिक, रोज़ रोज़ के नारे
कथनी-करनी में अंतर पर डींग मारते सारे
थोथे आदर्शवादियों सुनलो, जो कहता हूँ करके दिखलाऊंगा
रोक सको तो रोक लो मुझको मैं तो होली मनाऊंगा।

तुमको रहना हो तो रहो बेरंग, मैं तो अबीर उड़ाउंगा
जीवन में है कठिनाइयाँ सहस्त्र, खिल्ली उड़ाकर उन्हें निपटाऊंगा
जिन सब से थी अनबन उनको भी मैं तो गले लगाऊंगा
रोक सको तो रोक लो मुझको मैं तो होली मनाऊंगा।

पानी की किल्लत है कहते हो? मत करिए स्नान सप्ताह एक
जो ये कर पाए तुम, सम्मुख तुम्हारे नतमस्तक हो जाऊंगा
और जो न कर पाए तो फिर तुमको भी रंगों में भिगाऊंगा
रोक सको तो रोक लो मुझको मैं तो होली मनाऊंगा।

तुम मदिरा के लोभी, भांग की मादकता क्या जानोगे!
पर जो पथ काटा फिर मेरा, धतुरा तुमको चखाऊंगा।
रोक सको तो रोक लो मुझको मैं तो होली मनाऊंगा।
रोक सको तो रोक लो मुझको मैं तो होली मनाऊंगा।
- आशुतोष साहू 
Share on Google Plus
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment